विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों या सवालों पर मुख्य धारा का मीडिया की रिपोर्टिंग क्या उसी तरह होती है जैसी बीजेपी के मुद्दों या सवालों की होती है? क्या मीडिया की भाषा में कुछ अंतर दिखता है?
मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी सही या गलत है, इसका फैसला बहुत देर से आएगा। लेकिन जिस तरह और जिस अंदाज में यह पूरा मामला सामने आया है, उससे भारतीय लोकतंत्र के सहज होने के संकेत नहीं हैं। सिर्फ विपक्ष को भ्रष्ट साबित कर या घोषित कर अपने गिरेबान में न झांकने का यह तानाशाही अंदाज बहुत गंभीर खतरे की तरफ इशारा है।
नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला हालांकि खत्म हो गया लेकिन किताबों की दुनिया आपको किसी मेले तक सीमित नहीं रखती है। इसलिए किताबें खूब पढ़ने की आदत डालिए। सच तो यह है कि अच्छी किताबें पढ़ना आपके व्यक्तित्व में चमत्कारिक बदलाव कर सकती हैं। यह लेख पढ़िए और उसके बाद किताबें पढ़ना शुरू करिए।
पठान फिल्म क्या शाहरुख ख़ान की लोकप्रियता से सुपरहिट हुई? क्या फिल्म इतनी बेहतरीन है या फिर बहिष्कार के आह्वान से फिल्म ने 1000 करोड़ की कमाई कर ली? दरअसल, सचाई कुछ और है। जानें फिल्म कैसे सुपरहिट हुई।
दो मुस्लिम युवकी की हत्या के मुख्य आरोपी मोनू मानेसर को लेकर हिन्दू संगठन जुलूस निकाल रहे हैं। उसके बारे में जानकारियां सामने आ रही हैं, उससे गोरक्षा का खूंखार चेहरा सामने आ रहा है। मुसलमानों को विद्वेष की राजनीति के नाम पर कब तक इस तरह शिकार बनाया जाता रहेगा।
फिजी में विश्व हिन्दी सम्मेलन आयोजित करके एक बार फिर औपचारिकता पूरी की जा रही है। वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने अपने देश में हिन्दी की दुर्दशा पर नजर डाली है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं को संदेश दिया था कि वे मुसलमानों को लेकर अनावश्यक बयानबाजी न करें। प्रियदर्शन ने इस बात पर टिप्पणी की है कि पीएम मोदी ने जो संदेश दिया, क्या वो उनकी सरकार में भी दिखता है, उनकी सरकार का मुस्लिमों को लेकर क्या रवैया है।
सूर्य कुमार यादव इन दिनों क्रिकेट में तूफानी बैटिंग के लिए चर्चा में हैं, लेकिन सुर्खियों उनकी जाति को लेकर भी ख़ूब बन रही हैं। आख़िर ऐसा क्यों है कि उनकी जाति पर बहस हो रही है?
यह सच है कि हिंदी और उर्दू को सांप्रदायिक पहचान के आधार पर बांटने वाली दृष्टि बिल्कुल आज की नहीं है। उसका एक अतीत है और किसी न किसी तरह यह बात समाज के अवचेतन में अपनी जगह बनाती रही है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की।
साहित्य के लिए 2022 कैसा रहा? सुर्खियों में साहित्यकार गीतांजलिश्री रहीं तो सलमान रुश्दी भी रहे। कोरोना काल के बाद साहित्य की दुनिया में फिर से क्या उस तरह की हलचल हुई जैसी कोरोना से पहले हुआ करती थी?
प्रसिद्ध कलाकार सैयद हैदर रज़ा को कैसे याद किया जाएगा? क्या आपको पता है कि एक छोटे से गाँव से आने वाले रज़ा ने अंतरराष्ट्रीय कला जगत में एक लंबी यात्रा की!
स्टैंड-अप कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का आज निधन हो गया। आख़िर वह किस तरह से याद किए जाएँगे? राजू श्रीवास्तव की यूएसपी क्या थी? क्यों वे दूसरों से अलग थे?
भीष्म साहनी का 8 अगस्त को जन्मदिन था। इसी दिन 1915 में उनका जन्म आज के पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था। जानिए बतौर साहित्यकार वह किस रूप में याद किए जाते हैं…
रेत समाधि उपन्यास को बुकर पुरस्कार मिलने पर गीतांजलि श्री पर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ क्यों आ रही हैं? क्या हिंदी साहित्य और आलोचकों ने उन्हें अब तक उपेक्षित रखा था? क्या ऐसे लोग गीतांजलि श्री को जानते भी हैं?
भारत में हाल में राष्ट्रवाद पर इतना ज़ोर क्यों दिया जा रहा है? राष्ट्रवाद कितना अहम है और इसके नाम पर दुनिया भर में कैसे-कैसे घटनाक्रम घटे हैं? पढ़िए, राष्ट्रगान लिखने वाले रवींद्रनाथ टैगोर का क्या मानना था।
लेखिका गीतांजलि श्री का उपन्यास टूम ऑफ सैंड अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए शॉर्टलिस्ट की गई हिंदी भाषा की पहली कृति थी और पुरस्कार जीतने वाली भी यह पहली कृति बन गई।
कश्मीरी पंडितों का पलायन दुखद है। लेकिन क्या भारत में यही एक पलायन है? क्या किसी को अंदाज़ा है कि विकास और रोज़गार के नाम पर कितने भारतीयों को विस्थापित होना पड़ा है?