क्या भारतीय मीडिया इन दिनों भारतीय जनता पार्टी की भाषा बोलने लगा है? वैसे एक सवर्ण पूर्वग्रह भारतीय मीडिया की भाषा में हमेशा सक्रिय रहा, लेकिन वह पहले एक शील के तहत इसे कुछ छुपाने की या संतुलित करने की ज़रूरत महसूस करता था। मगर पिछले कुछ दिनों में भारत में आक्रामक बहुसंख्यकवाद के उभार का असर हो या कुछ और- मुख्यधारा के मीडिया ने यह न्यूनतम शील भी छोड़ दिया है।
क्या बीजेपी की भाषा भारतीय मीडिया की भी भाषा हो चुकी है?
- विचार
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- 14 Mar, 2023

विपक्षी दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों या सवालों पर मुख्य धारा का मीडिया की रिपोर्टिंग क्या उसी तरह होती है जैसी बीजेपी के मुद्दों या सवालों की होती है? क्या मीडिया की भाषा में कुछ अंतर दिखता है?
मिसाल के तौर पर ब्रिटेन के दौरे पर गए राहुल गांधी के वक्तव्यों की रिपोर्ट देखें। राहुल गांधी ने मोटे तौर पर वहां दो-तीन बातें कही थीं। उन्होंने भारतीय लोकतंत्र के क्षरण पर चिंता जताई और इस बात का उल्लेख किया कि आकार में यूरोप के तीन-चौथाई हिस्से में लोकतंत्र की इस हालत से यूरोप-अमेरिका बेपरवाह हैं- शायद इसलिए कि उनकी नज़र पूंजी और बाज़ार पर है। इसके बाद मीडिया में ख़बर चल पड़ी कि राहुल गांधी ने भारतीय लोकतंत्र के भीतर अमेरिका और यूरोप के हस्तक्षेप की मांग की है। अगले दिन राहुल गांधी ने स्पष्ट किया कि भारतीय लोकतंत्र के संकट की वजहें अंदरूनी हैं और इनका हल भी भीतर से ही निकलेगा। लेकिन मीडिया ने इसे राहुल गांधी का यू-टर्न बताया।