भीष्म साहनी के उपन्यास 'तमस' का जो पहला दृश्य है, वह रोंगटे खड़े करने वाला है। हिंदी ही नहीं, दुनिया के बड़े उपन्यासों में भी ऐसा यथार्थवादी दृश्य तत्काल याद नहीं आता। एक तंग अंधेरी कोठरी में रात भर एक सुअर को मारने में जुटा नत्थू इतना वास्तविक है कि उसे प्रतीक बनाने की इच्छा नहीं होती। लेकिन उपन्यासकार की युक्ति में हो या न हो, वह एक प्रतीक भी बन जाता है- उस ग़रीब और दलित का प्रतीक,  जो किसी सांप्रदायिक साज़िश में अपनी पूरी बेख़बरी में शामिल कर लिया जाता है।