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लोकार्पण समारोह में जुटे लेखक, कवि, पत्रकार।

शिवरानी जी अपने समय से बहुत आगे की लेखिका थीं: अशोक वाजपेयी

हिंदी के प्रख्यात लेखक एवम संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने लेखकों विशेषकर महिला रचनाकारों से अपने लेखन में अपने समय को दर्ज करते हुए राजनीतिक दृष्टि अपनाने  की अपील की है। वाजपेयी ने सोमवार को गांधी शांति प्रतिष्ठान में प्रेमचन्द की पत्नी शिवरानी जी के तीन कहांनी संग्रहों का लोकार्पण करते हुए यह बात कही। उनके वर्षों से दो अनुपलब्ध कहांनी संग्रह "नारी हृदय "और" "कौमुदी " का सात दशक बाद पुनर्प्रकाशन किया गया और उनकी असंकलित कहानियों का नया संग्रह "पगली " उनके निधन के करीब  50 साल बाद अब आया है।
स्त्री दर्पण द्वारा शिवपूजन सहाय की 63 वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में "स्त्री लेखा "पत्रिका के स्त्री रंगमंच अंक का भी लोकार्पण किया गया जो रेखा जैन की जन्मशती पर केंद्रित है।समारोह को  सुप्रसिद्ध  विद्वान  हरीश त्रिवेदी चर्चित आलोचक ,रोहिणी अग्रवाल साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखिका अनामिका एवम कहानीकार नीला प्रसाद और शिवपूजन सहाय के नाती  विजय नारायण ने भी  संबोधित किया।
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वाजपेयी ने वर्तमान सत्त्ता की राजनीति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज लेखकों को अपने समय का सच कहने की जरूरत है। शिवरानी देवी अपने समय से आगे की लेखिका थीं और उनकी कहानियों में निजता के साथ साथ  राजनीतिक दृष्टि भी है।आज की  स्त्री  लेखिकाओं में वह दृष्टि नहीं दिखाई पड़ती जो शिवरानी जी के पास थीं।
उंन्होने कहा कि शिवरानी जी कहांनी समझौता दो पात्रों के संवाद की अनूठी कहांनी है। वैसी कहानी हिंदी में मुझे दिखाई नहीं देती। उंन्होने साहस की भी चर्चा की।
समारोह में रश्मि वाजपेयी, नासिरा शर्मा, रेखा अवस्थी, गिरधर राठी, विभा सिंह चौहान, अनिल अनलहातु, जयश्री पुरवार, मीना झा, वाज़दा खान, अतुल सिन्हा, जितेंद्र श्रीवस्तव,  ज्योतिष जोशी, अशोक कुमार, विभा बिष्ट, श्याम सुशील, मनोज मोहन, रश्मि भारद्वाज, अशोक गुप्ता, प्रसून लतान्त, शुभा दिवेदी आदि उपस्थित थे।
प्रेमचन्द की जीवनी "कलम का सिपाही " का अंग्रेजी अनुवाद करने वाले त्रिवेदी ने कहा कि उन्हें शिवरानी से मिंलने के अनेक अवसर मिले, लेकिन जब भी वे मिली वह बहुत शांत स्वभाव की महिला थीं। किसी से घर में बात भी नहीं करती थीं। अपने पुत्रों श्रीपत राय और अमृत राय से भी नहीं। मुझे यह देखकर आश्चर्य भी हुआ कि इसी शिवरानी जी ने अपने जमाने मे " साहस" जैसी साहसिक कहांनी लिखी जिसमें बेमेल विवाह का तीखा विरोध करते हुए लड़की ने वर को ही जूते से मंडप में पीट दिया।
त्रिवेदी ने कहा कि प्रेमचन्द और शिवरानी देवी में तुलना करने और शिवरानी जी को बढ़चढ़कर बताने की भी जरूरत नहीं है। अनामिका  ने कहा के शिवरानी देवी का लेखन या उन्होंने स्त्रियों की आंखें साफ करने का काम किया। अगर किसी को ध्यान से देख लो तो उससे नफरत करना करते नहीं बनता है। प्रेमचंद की बूढ़ी काकी कहानी में समय वातावरण का चित्रण बहुत सुंदर हुआ है वही शिवरानी देवी की बूढ़ी  काकी कहानी में लेखिका अंदर की ओर लौटी है और जो संवेदनात्मक रूप से जो चित्रण किया है वह बहुत सुंदर हुआ है।
रोहिणी अग्रवाल ने कहा कि आज हमें शिवरानी देवी को केवल याद करने की नहीं बल्कि उनकी तरह योद्धा स्त्री बनकर समाज में स्त्रियों के अधिकार के लिए लड़ने की जरूरत है।
नीला प्रसाद ने “ साहस” कहांनी का विश्लेषण करते हुए लेखिका के साहस की चर्चा की एवम कहा कि 1924 में एक स्त्री द्वारा बेमेल विवाह का विरोध करते हुए वर को जूते से मंडप में मारना कितनी बड़ी घटना थी क्योंकि आज भी कोई लड़की यह साहस नहीं कर पाती है। विजय नारायण ने अपने नाना शिवपूजन सहाय का  प्रेमचन्द तथा शिवरानी जी के साथ आत्मीय संबंधों का जिक्र करते हुए उस दौर को याद किया जब बनारस में प्रेमचन्द के साथ लेखकों का जुटान होता था ।
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समारोह में नारायण के पिता एवम स्वतंत्रता सेनानी रंगकर्मी बीरेंद्र नारायण की अंग्रेजी में थिएटर पर लिखी पुस्तक के आवरण का भी लोकार्पण किया गया। दिव्या जोशी ने कल्पना मनोरमा की किताब की महेश दर्पण द्वारा की गई समीक्षा का पाठ किया। मीनाक्षी प्रसाद ने शिवरानी जी को काव्यांजलि पेश की और एक उनकी स्मृति में एक गीत भी गाया।संचालन कल्पना मनोरमा और विशाल पांडेय ने किया।
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क़मर वहीद नक़वी
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