सुख्यात लेखिका गगन गिल को उनके कविता संग्रह 'जब तक मैं आई बाहर' के लिए साहित्य अकादमी सम्मान देने की घोषणा हुई है। इस संग्रह पर वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन ने बहुत पहले यह टिप्पणी लिखी थी। उसे सत्य हिन्दी पर प्रियदर्शन के फेसबुक पेज से लेकर प्रकाशित किया जा रहा है।
पृथ्वी के जल, जंगल और जमीन पर किसका हक है? क्या आदिवासियों के पास जमीन के कागजात नहीं हैं तो क्या उनका हक नहीं है? कुछ ऐसी ही भावना पर लिखी पुस्तक `नीला कार्नफ्लावर’ की समीक्षा। अरुण कुमार त्रिपाठी की क़लम से...
सेपियन्स जैसी बेस्टसेलर पुस्तक लिखने वाले इसराइली इतिहासकार युआल नोआ हरारी ने सितंबर 2024 में आई अपनी ताजा पुस्तक—नेक्ससः ए ब्रीफ हिस्ट्री आफ इनफारमेशन नेटवर्क्स फ्राम स्टोन एज टू एआई— में बड़े ख़तरे की आशंका जताई है।
31 जुलाई 1880 को बनारस के पास लमही नामक गाँव में जन्मे मुंशी प्रेमचंद की आज 144 वीं जयंती है। उनका नाम धनपत राय था। जानिए, उनका नाम नवाब राय बनारसी और फिर मुंशी प्रेमचंद कैसे पड़ा।
अल्काज़ी की एक जीवनी – `इब्राहीम अल्काज़ी : होल्डिंग टाइम कैप्टिव’ आई है जिसे उनकी पुत्री और शिष्या अमाल अल्लाना ने लिखा है। जानिए अलकाज़ी का कैसा चित्रण किया गया है पुस्तक में।
महिलाओं की पहचान थीम पर आधारित नाटक 'बेटियाँ मन्नू की' का मंचन किया गया। जानिए, समाज में महिलाओं की स्थिति और उनकी पहचान से जुड़े पहलुओं का कैसे मंचन किया गया।
क्या इतिहास को मिटाया जा सकता है, या झुठलाया जा सकता है? क्या ठीक इसे ठीक किया जा सकता है? पढ़िए "दी इंडियंस: हिस्ट्रीज़ ऑफ़ ए सिविलाइज़ेशन” पुस्तक की समीक्षा में।
'द अनबियरेबल लाइटनेस ऑफ बीइंग' के लेखक और प्रसिद्ध साहित्यकार मिलान कुंदेरा को दुनिया भर में किस रूप में जाना जाता है और अब उन्हें किस रूप में याद किया जाएगा?
गोरखपुर विश्वविद्यालय में ओमप्रकाश शर्मा, गुलशन नंदा या किसी अन्य लेखक को पढ़ाए जाने की बात से बेचैनी क्यों पैदा हो रही है? प्रेमचंद और निराला के साथ उनका ज़िक्र क्यों किया जा रहा है?
यह सच है कि हिंदी और उर्दू को सांप्रदायिक पहचान के आधार पर बांटने वाली दृष्टि बिल्कुल आज की नहीं है। उसका एक अतीत है और किसी न किसी तरह यह बात समाज के अवचेतन में अपनी जगह बनाती रही है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की।