जब गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अनुवाद को बुकर सम्मान मिलने की ख़बर आई तो हिंदी साहित्य की हलचलों से अनजान 40 करोड़ पार की विशाल हिंदी पट्टी ने अचरज से पूछा- यह गीतांजलि श्री कौन है, और यह ‘रेत समाधि’ कैसी किताब है। बुकर की लांग लिस्ट में किताब के आते ही इसकी हजारों और आने वाले दिनों में लाखों प्रतियां बिक गईं। खरीदने वालों ने यह मान कर ख़रीदी कि यह बहुत दिलचस्प, चटपटी सी किताब होगी- जिसमें गूढ़ता भी इतनी आकर्षक पैकेजिंग के साथ होगी कि एक बड़ा जीवन दर्शन आसानी से समझ में आ जाएगा। आख़िर दुनिया इस पर यों ही नहीं रीझी है। लेकिन पढ़ने वालों ने पाया कि यह तो बहुत मुश्किल किताब है- पांच पन्नों में ही कहानी बिखर जाती है, पचास पन्नों में भाषा समझ में नहीं आती है और पचहत्तर पन्नों तक पहुंच कर ऊब कर इसे रख देने का जी करता है। उपन्यास में सबकुछ है मगर कोई दास्तान नहीं है। यह मासूम और मायूस पाठकीय प्रतिक्रिया अनुभव के एक गहरे और जटिल संसार या सागर में छलांग न लगा पाने के अभ्यास का नतीजा थी जिस पर और बात करना ऐसे विषयांतर का जोखिम मोल लेना होगा, जिसमें सबकुछ और बिखर जाने का ख़तरा है।
बड़ी लंबी, बड़ी गहरी दास्तान ए रेत समाधि
- साहित्य
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- 10 Jun, 2024

लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास टूम ऑफ सैंड यानी रेत समाधि को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार मिला। पढ़िए यह समीक्षा आख़िर क्या है इस उपन्यास में।
बहरहाल, जब यह ख़बर आई कि ‘रेत समाधि’ पर मशहूर दास्तानगो महमूद फ़ारूक़ी एक दास्तान तैयार कर रहे हैं तो हैरान होना स्वाभाविक था। एक ऐसी कृति पर दास्तान कैसे तैयार की जा सकती है जो दास्तानों के पार चली जाती है? ‘रेत समाधि’ में सब कुछ है, मगर वैसी इकहरी दास्तान नहीं है जिसे कुछ संपादित करके, रट कर, कुछ नाटकीय अंदाज़ में प्रस्तुत करते हुए छुट्टी पा ली जाए। यह एक बेहद जटिल पाठ है जिसके कई सिरे हैं। ये सिरे कहीं आपस में मिलते हैं और कहीं नहीं मिलते हैं। फिर वह लिखी इस अंदाज़ में गई है कि अतीत, वर्तमान, भविष्य, इतिहास, भूगोल और साहित्य सब गड्डमड्ड होते चलते हैं। पढ़ते हुए तो यह संभव है कि पाठक फिर से पन्ने पलट ले, वापस लौट कर पुरानी पढ़त को फिर से बांचे और फिर कथा का मर्म समझे। लेकिन सुनते और सुनाते हुए यह सुविधा नहीं है। जो है, बस एक बार में इस तरह बयान किया जाना है कि वह सिर्फ़ समझ में ही न आए, बल्कि दिल में उतर आए, टीसता रहे। फिर यहां तो कोई एक क़िस्सा नहीं है- एक विराट जंगल की तरह कई क़िस्से हैं। इन क़िस्सों में परिवार है- मां-बेटी-भाई-भाभी-नौकर-चाकर और दुनिया है, बंटवारा, दंगे, दहशत, बेदखली, स्मृति-विस्मृति है, भारत-पाकिस्तान, दिल्ली-लाहौर और खैबर है और कभी कौवे-तीतर, कभी आम और कभी साड़ी और कभी दीवार और कभी खिड़की और कभी घर का खेल है।