आदिवासी मामलों के विशेषज्ञ और अनुसूचित जाति और जनजाति आयुक्त रहे डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा बस्तर के आदिवासियों को समझाया करते थे कि अगर कोई लेखपाल कानूनगो काग़ज लेकर आए और कहे कि यह खेत और जंगल तुम्हारा नहीं है तो कह देना कि काग़ज तुम्हारा खेत हमारा। वे व्यंग्य में यह भी कहा करते थे कि अच्छा हुआ कि आदिवासियों ने हम लोगों जैसी पढ़ाई नहीं की वरना वे भी हमारी तरह भ्रष्ट और शोषक होते। वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में मानव शास्त्र के प्रोफेसर वीरेंद्र प्रताप यादव का उपन्यास `नीला कार्नफ्लावर’ इसी तरह मानवशास्त्रीय ज्ञान के विरुद्ध एक विद्रोह है। पूर्वी और पश्चिमी यूरोप के बीच में स्थित एक दबे कुचले देश सोमेट्र का निवासी मार्टिन अपने देश से बाहर नीदरलैंड में मानवशास्त्र की पढ़ाई करने निकलता है और उपन्यास के आखिर में जब वह फील्ड सर्वे करके और मोनोग्राफ लिखने के बाद यह देखता है कि उसके ज्ञान का इस्तेमाल आमेजन के वर्षावन में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को तबाह करके प्रकृति के दोहन के लिए किया जा रहा है तो वह वर्षों की मेहनत से पाए ज्ञान और उसके सहारे हीहो और नुआ समुदाय पर तैयार किए गए मोनोग्राफ को ही आग के हवाले कर देता है।
`नीला कार्नफ्लावर’: एक विद्रोही रचना की आग की लपटें
- साहित्य
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- 20 Oct, 2024

पृथ्वी के जल, जंगल और जमीन पर किसका हक है? क्या आदिवासियों के पास जमीन के कागजात नहीं हैं तो क्या उनका हक नहीं है? कुछ ऐसी ही भावना पर लिखी पुस्तक `नीला कार्नफ्लावर’ की समीक्षा। अरुण कुमार त्रिपाठी की क़लम से...
प्रकृति के असंख्य रंग बिरंगे दृश्यों, जीव जंतुओं, नदियों, पहाड़ों और वनस्पतियों, मानव मनोभावों, बिंबों, कल्पनाओं और फंतासी से भरे इस बेहद रोचक उपन्यास का मूल स्वर विद्रोही है। यूरोप और दक्षिण अमेरिका की नदियों के नाम पर सृजित हर अध्याय जैसे कि अपने मानव समाज की एक मौलिक धारा हो और वह अपने अस्तित्व के लिए छटपटा रही हो। कथा एक विद्रोह है आधुनिकता के विरुद्ध, औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध, यूरोपीय ज्ञान परंपरा के विरुद्ध और प्रकृति के दोहन, शोषण, युद्ध और हिंसा पर आधारित नस्लवाद और राष्ट्रवाद के विरुद्ध। उपन्यास आदिम जीवन की मिथकीय कथाओं के माध्यम से राष्ट्र, प्रकृति, युद्ध, प्राकृतिक संपदा, वीरता और त्याग के रहस्य को समझाता है और बीच बीच में गंभीर टिप्पणियां करता चलता है। कथा की पृष्ठभूमि भारतीय नहीं है, हालांकि मार्टिन से थोड़े समय के लिए विश्वविद्यालय में रोमांस करने वाली एक युवती लक्ष्मी की जड़ें भारत में हैं। उसके दादा भारत से संविदा मजदूर बनाकर वेस्टइंडीज के एक द्वीप पर डच लोगों द्वारा लाए गए थे। उन्होंने वहां नारकीय जीवन जिया था और जनांदोलन करके व तमाम बलिदान देकर स्वतंत्रता हासिल की थी।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।