क्या आप उस “योद्धा” स्त्री को जानते हैं जो बाल विधवा थीं पर उनका दोबारा विवाह हुआ? उनकी औपचारिक शिक्षा नहीं थी लेकिन शादी के बाद उन्होंने घर में रहकर पढ़ाई लिखाई की और वह स्वाधीनता आंदोलन की तरफ़ आकृष्ट हुईं, स्त्रियों की सभाएँ संबोधित करने लगीं। फिर दो माह के लिए जेल भी गयीं और हिंदी की एक प्रखर कहानीकार बनीं लेकिन उन्हें भुला दिया गया, उनका मूल्यांकन नहीं हुआ और उनकी स्मृति को सुरक्षित रखने का कोई प्रयास नहीं हुआ न कोई आयोजन हुआ। वे अपने पति के साये में ओझल हो गईं।