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विनोद कुमार शुक्ल को मिलेगा ज्ञानपीठ पुरस्कार

हिंदी साहित्य के प्रख्यात कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल को इस साल के प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। भारतीय ज्ञानपीठ ने शनिवार को इसकी घोषणा की। शुक्ल की साहित्यिक उपलब्धियों और उनकी अनूठी लेखन शैली को सराहा गया है। यह पुरस्कार हिंदी साहित्य में उनके शानदार योगदान को दिखाता है। 

कवि, उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में विख्यात शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था। उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में एक अलग पहचान रखती हैं। विनोद कुमार शुक्ल ने अपनी साहित्यिक यात्रा की शुरुआत कविताओं से की। उनकी पहली कविता संग्रह 'लगभग जय हिंद' 1971 में प्रकाशित हुई। इसके बाद 'वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर विचार की तरह' (1981) जैसे संग्रह ने उन्हें कविता प्रेमियों के बीच लोकप्रिय बनाया। उनकी कविताएँ साधारण शब्दों में गहरे दार्शनिक विचारों को व्यक्त करती हैं। उनके उपन्यासों ने भी हिंदी साहित्य में क्रांति ला दी।

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उनकी पहली कविता संग्रह 'लगभग जय हिंद' (1971) से लेकर उपन्यास 'नौकर की कमीज' (1979) और 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' (1996) तक, शुक्ल ने साहित्य में अपनी मौलिकता और गहराई का परिचय दिया। 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' के लिए उन्हें 1999 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था और अब ज्ञानपीठ पुरस्कार उनके करियर का सबसे बड़ा सम्मान है।

शुक्ल की लेखन शैली को अक्सर जादुई यथार्थवाद के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें वे रोजमर्रा की ज़िंदगी को असाधारण ढंग से पेश करते हैं। उनकी कविताएँ और कहानियाँ साधारण शब्दों में गहरे दार्शनिक विचारों को समेटती हैं, जो उन्हें बच्चों से लेकर विद्वानों तक सभी के लिए प्रिय बनाती हैं।

ज्ञानपीठ पुरस्कार उन्हें 25 लाख रुपये की राशि, एक प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा के साथ दिया जाएगा। हिंदी साहित्य के जानकारों का कहना है कि यह सम्मान शुक्ल के उस योगदान को रेखांकित करता है, जिसने हिंदी साहित्य को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाई। 2023 में उन्हें पीईएन/नाबोकोव पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, और अब ज्ञानपीठ पुरस्कार उनकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति को और मज़बूत करता है।
रायपुर में रहने वाले शुक्ल साहित्यिक आयोजनों से दूर रहते हैं और अपने लेखन में ही मगन रहते हैं। शुक्ल की लेखन शैली बेहद सरल लेकिन प्रभावशाली है।
छोटे-छोटे वाक्यों में लिखने की सादगी उनकी ताक़त है, जो उनकी रचनाओं को हर वर्ग के पाठक तक पहुँचाती है। उनकी कहानियाँ और कविताएँ बच्चों के लिए भी उतनी ही रोचक हैं, जितनी बड़ों के लिए। उनकी हालिया रचनाओं में बच्चों के लिए लिखी किताबें भी शामिल हैं।
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शुक्ल ने जबलपुर के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से एमएससी की डिग्री हासिल की और रायपुर के कृषि महाविद्यालय में प्राध्यापक के रूप में काम किया। उनकी रचनाओं में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण जीवन की झलक मिलती है। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य के सबसे बड़े सम्मानों में से एक है। यह पुरस्कार पहले सुमित्रानंदन पंत, महादेवी वर्मा और निर्मल वर्मा जैसे दिग्गजों को मिल चुका है। शुक्ल का यह पुरस्कार न केवल उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि यह हिंदी साहित्य की समृद्धि और विविधता को भी दर्शाता है। उनकी हालिया रचनाओं में बच्चों के लिए लिखी किताबें भी शामिल हैं, जो उनकी बहुमुखी प्रतिभा को उजागर करती हैं।

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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क़मर वहीद नक़वी
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