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वक्फ नियमों के प्रस्तावित संशोधनों में सबसे आपत्तिजनक क्या है, जानिए केंद्र के इरादे 

वक्फ संपत्तियों को रेगुलेट करने के नाम पर, किसी संपत्ति को वक्फ के कब्जे में कैसे माना जाए, इसे फिर से तय करने के लिए सरकार एक विधेयक लाई है। इसमें वक्फ संपत्ति की परिभाषा से लेकर राज्यों में वक्फ बोर्डों के ढांचे को बदलने तक कई महत्वपूर्ण संशोधन शामिल हैं। इस विधेयक को मुस्लिम धर्मार्थ बंदोबस्ती. वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 नाम दिया गया है। 

इसमें सबसे आपत्तिजनक प्रस्ताव है, जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार वक्फ बोर्डों में एक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी और कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्यों को नियुक्त कर सकेगी। बड़ा सवाल यह है कि सरकार ने कई मंदिरों को लेकर ट्रस्ट और प्रबंध समितियां बना रखी हैं, क्या उनमें मुस्लिमों को कार्यकारी अधिकारी और सदस्य बनाकर कोई उदाहरण पेश किया गया।


सरकार के प्रस्तावित बिल के प्रमुख आपत्तिजनक बदलावों में जिला कलेक्टर को इस बात पर मध्यस्थ के रूप में लाना है कि कोई संपत्ति वक्फ संपत्ति है या सरकारी भूमि। यानी डीएम ही सबकुछ तय करने का अधिकारी होगा। सभी लोग जानते हैं कि डीएम या जिलाधिकारी या जिला कलेक्टरों की नियुक्ति राज्य सरकार करती है। ये सारे अधिकारी सरकार के इशारे पर काम करते हैं। ऐसे में वक्फ संपत्तियों पर इनके फैसले क्या होंगे, इसे आसानी से समझा जा सकता है।  

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क्या है वक्फ संपत्ति

वक्फ संपत्ति वो संपत्ति है, जो कोई भी मुस्लिम परिवार या मुस्लिम शख्स अल्लाह के नाम अपनी संपत्ति को दान कर देता है। कई बार यह भी होता है कि ऐसी संपत्ति की देखरेख उसी शख्स के परिवार के लोग या उनकी अगली पीढ़ियां करती हैं, लेकिन उन्हें उस संपत्ति को शरीयत के हिसाब से बेचने का अधिकार नहीं है, क्योंकि वो संपत्ति अल्लाह को या अल्लाह के लिए दान की जा चुकी है। सरकार ने ऐसी वक्फ संपत्तियों को रेगुलेट करने के लिए वक्फ बोर्ड और वक्फ ट्रिब्यूनल बना रखा है। केंद्र के अलावा राज्यों में भी वक्फ बोर्ड हैं। लेकिन मोदी सरकार किसी भी वक्फ संपत्ति को अपने नए विधेयक के जरिए उनकी शक्ल, उनका इस्तेमाल, उनका मालिकाना हक बदलना चाहती है। नियम लागू होने पर इसका नतीजा यह निकलेगा कि भविष्य में मुस्लिम अपनी संपत्तियों को अल्लाह के नाम दान करना बंद कर देंगे। पुरानी वक्फ संपत्तियों पर मुकदमे चलेंगे। मुसलमानों के पास जो वक्फ संपत्तियां हैं, सरकार उनका मनमाना इस्तेमाल करेगी। मोदी सरकार का यह कदम सीएए (नागरिकता संशोधन) कानून के बाद नई विवादित पहल है।
प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है कि "इस अधिनियम के शुरू होने से पहले या बाद में वक्फ संपत्ति के रूप में पहचानी गई या घोषित की गई किसी भी सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा।" संशोधन में कहा गया है कि विवाद की स्थिति में यह यह तय करने का अधिकार कलेक्टर, जिलाधिकारी, डीएम, डीसी को होगा, न कि वक्फ ट्रिब्यूनल को। इस नियम से बहुत साफ है कि इसके लागू होते ही जिन संपत्तियों को वक्फ घोषित किया जा चुका है, उनका स्वरूप बदल जाएगा। एक तरह से उस पर सरकार का कब्जा होगा और वो फिर उस जमीन या भवन का जैसे चाहे इस्तेमाल करे।

अभी जो नियम लागू है या पुराने वक्फ कानून के तहत वक्फ संपत्ति का निर्णय विशेष रूप से वक्फ ट्रिब्यूनल द्वारा किया जाता है और अधिनियम की धारा 6 के अनुसार, "ऐसे मामले के संबंध में ट्रिब्यूनल का निर्णय अंतिम होता है।"

मोदी सरकार के आपत्तिजनक प्रस्तावों को और आसानी से इस तरह समझिए। इसका मतलब यह है कि जब तक सरकार इस मुद्दे पर फैसला नहीं कर लेती, तब तक विवादित जमीन पर वक्फ का नियंत्रण नहीं हो सकता। प्रस्तावित विधेयक, यदि लागू होता है, तो केंद्र सरकार "भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षक (सीएजी), या केंद्र सरकार द्वारा नामित किसी भी अधिकारी द्वारा किसी भी समय किसी भी वक्फ के ऑडिट का निर्देश देने की शक्ति दे देगा।" यानी केंद्र सरकार देश में किसी भी वक्फ संपत्ति के ऑडिट का आदेश दे सकती है।

जिला कलेक्टर बनेंगे वक्फ संपत्तियों के माई-बाप

प्रस्तावित विधेयक में जिला कलेक्टर, जिलाधिकारी या डीएम या डीसी को माई-बाप बना दिया गया है। प्रस्तावित विधेयक में कहा गया है, "यदि कलेक्टर यह तय करता है कि वक्फ संपत्ति सरकारी संपत्ति है, तो वह राजस्व रिकॉर्ड में आवश्यक सुधार करेगा और इस संबंध में राज्य सरकार को रिपोर्ट भेजेगा।" फिर, एक महत्वपूर्ण उप-धारा में कहा गया है कि "जब तक कि कलेक्टर अपनी रिपोर्ट पेश नहीं कर देता या भेज नहीं देता, तब तक वो संपत्ति वक्फ संपत्ति नहीं मानी जाएगी।" यानी अब जिला कलेक्टर के हाथ में होगा कि वो किसी संपत्ति को वक्फ न माने और चाहे जितने दिन तक उसी स्थिति में रखे और सरकार को अपने हिसाब से या सरकार के अनुसार रिपोर्ट भेजे। सवाल यह है कि क्या भारत के सारे जिला कलेक्टर अपने हिसाब से काम करते हैं। सरकार जिस संपत्ति पर चाहेगी, वैसी रिपोर्ट मंगवा लेगी। यह सर्वविदित है कि जिला कलेक्टर मनचाही पोस्टिंग के लिए क्या क्या नहीं करते और कैसे करोड़ों का कैश उनके घरों से बरामद होता है। 

यूपीए-2 के दौरान केंद्र में पूर्व अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने कहा: “सरकार ने मुस्लिम समुदाय और अन्य स्टेकहोल्डर्स के साथ सलाह किए बिना अचानक ही इस विधेयक को पेश किया है। इस विधेयक ने कुल मिलाकर 2013 में वक्फ अधिनियम में संशोधन के माध्यम से सरकार द्वारा लाए गए सभी सुधारों को खत्म कर दिया है... सरकार ट्रिब्यूनल और वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण को खत्म कर रही है। बिना डीड के किसी भी वक्फ की रजिस्ट्री नहीं होगी। उन्होंने वक्फ संपत्तियों से संबंधित मुद्दों पर कलेक्टर को अथॉरिटी बना दिया है जो एक सरकारी सेवक है न कि व्यक्तिगत अथॉरिटी।”

एआईएमआईएम अध्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक बयान में कहा कि ”केंद्र सरकार मुसलमानों से वक्फ बोर्ड की संपत्ति छीनना चाहती है। मोदी सरकार वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता छीनना चाहती है. और यह वक्फ संपत्तियों को चलाने के तरीके में वक्फों की इच्छा के विरुद्ध हस्तक्षेप करना चाहती है। यह धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ है।”

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ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक बयान में कहा, ''यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि अधिनियम में कोई भी बदलाव जो वक्फ संपत्तियों की प्रकृति को बदलता है या सरकार या किसी व्यक्ति के लिए उस वसीयत को हड़पना आसान बनाता है। स्वीकार्य नहीं होगा।”

पर्सनल लॉ बोर्ड यह स्पष्ट करना महत्वपूर्ण समझता है कि वक्फ संपत्तियां धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए समर्पित मुस्लिमों द्वारा दिया गया दान है। सरकार ने उन्हें रेगुलेट करने के लिए ही वक्फ अधिनियम बनाया है। उसने कहा कि वक्फ अधिनियम और वक्फ संपत्तियां भारत के संविधान और शरीयत एप्लिकेशन अधिनियम, 1937 द्वारा संरक्षित हैं। मुस्लिम बोर्ड ने "एनडीए के सहयोगियों और अन्य विपक्षी दलों से संसद में ऐसे किसी भी कदम को खारिज करने की जोरदार अपील की है।"

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क़मर वहीद नक़वी
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