सूचनाएं विवेक देती हैं या विवेक हर लेती हैं? यह एक बड़ा सवाल आज मानव सभ्यता के माथे पर घूम रहा है। सूचनाओं के पक्षधर कहते हैं कि सूचनाएं हमें सशक्त करती हैं और हम ज्यादा अच्छी तरह से कोई निर्णय ले सकते हैं और बीमारी से लेकर आर्थिक- राजनीतिक किसी समस्या का समाधान कर सकते हैं। इसलिए सूचनाओं से फैलाए गए भ्रम का इलाज और सूचनाएं ही हैं। यानी सूचनाओं के खुलेपन से हम न सिर्फ सूचनाओं से पैदा होने वाली समस्याओं का हल निकाल सकते हैं बल्कि उन तमाम समस्याओं का हल कर सकते हैं जिन्हें सूचनाओं ने नहीं पैदा किया है। जबकि सूचनाओं के ख़तरों की ओर इशारा करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि सूचनाओं की बाढ़ में यह तय कर पाना कठिन है कि ग़लत सूचनाएं कौन सी हैं और सही सूचनाएं कौन हैं। सूचनाएं आमतौर पर सत्य तक नहीं ले जातीं और जब तक ले जाती हैं तब तक बहुत देर हो जाती हैं। सूचनाओं से मानव विवेक भी नहीं उत्पन्न होता। उसके लिए सूचनाओं से मदद मिल सकती है लेकिन विवेक ऐसी अवस्था है जिसे पाने के लिए अन्य कारकों की भी आवश्यकता होती है। ऐसे दौर में जब सूचनाएं देने से ज्यादा दबाई जा रही हों और एआई यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने सूचनाओं पर कब्जा कर लिया हो तब मानव सभ्यता को अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहिए।