प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बीते दस साल से अलग-अलग ओहदों में रहते हुए सुशोभित कर रहे कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह को ‘जश्ने रोशनी’ और ‘जश्ने आभा’ जैसे नामों में दिवाली के इस्लामीकरण का ख़तरा नज़र आता है। इस दिवाली पर आईआईटी कानपुर के कुछ छात्रों ने जो समारोह किया, उसके निमंत्रण पत्र पर उन्होंने ‘जश्ने रोशनी’ लिखा। इसी तरह लेडी श्रीराम कॉलेज में दिवाली के मौक़े पर ‘जश्ने आभा’ हुआ। केंद्रीय मंत्री को इन दोनों शब्दों पर एतराज़ है।
कौन लोग हैं जो दिवाली को रोशनी से अलग करना चाहते हैं?
- विचार
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- 4 Nov, 2024

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को ‘जश्ने रोशनी’ और ‘जश्ने आभा’ जैसे नामों से क्यों आपत्ति है? हैप्पी दिवाली या हैप्पी होली पर एतराज़ क्यों नहीं?
गिरिराज सिंह की सांप्रदायिक राजनीतिक दृष्टि से सब परिचित हैं, इसलिए उनके इस बयान पर किसी को हैरान नहीं होना चाहिए। लेकिन इस सांप्रदायिक राजनीति के पीछे जो सांस्कृतिक दृष्टि सक्रिय है, वह ज़रूर चिंतित करने वाली है। यह दृष्टि मान कर चलती है कि हिंदी हिंदुओं की भाषा है और उर्दू मुसलमानों की। गिरिराज सिंह जैसी विद्वतापूर्ण बातें करने वाले कुछ दूसरे लोगों को दिवाली या होली के अवसर पर मुबारक कहना बुरा और पराया लगता है। जाहिर है, इस मान्यता को उन लोकप्रिय माध्यमों से भी बल मिला है जहां मुसलमान उर्दूनिष्ठ हिंदी और हिंदू संस्कृतनिष्ठ हिंदी बोलते देखे जाते हैं।