जो साहित्य अकादेमी सम्मान संजीव को कम से कम 20 साल पहले मिल जाना चाहिए था, वह अब जाकर मिला है। हालांकि इस दुर्घटना के शिकार होने वाले वे अकेले लेखक नहीं हैं। हिंदी समाज में जैसे यह प्रवृत्ति हो गई है कि जब तक लेखक 75 पार न करे, उसे सम्मानित न किया जाए। पिछले पंद्रह बरसों में साहित्य अकादेमी की ओर से हिंदी में दिए गए पुरस्कारों की सूची बताती है कि अस्सी फ़ीसदी से ज्यादा उन लेखकों को सम्मान मिले जो 75 पार के हो गए।
क्योंकि संजीव का क़द साहित्य अकादेमी सम्मान से बड़ा है
- साहित्य
- |
- |
- 21 Dec, 2023

अक्सर फासीवादी माने जाने वाले तंत्र में भी संस्थाएं अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए ऐसे लोगों को सम्मानित करती रहती हैं जो उनके विरोधी हैं।
संजीव निस्संदेह हिंदी की कथा-परंपरा के प्रथम पांक्तेय लेखकों में हैं। उन्होंने जीवन और समाज के बहुत सारे पक्षों को छूती कहानियां लिखीं, लेकिन हर बार वे कमज़ोर तबकों के पक्ष में खड़े दिखे। ‘सर्कस’, ‘पांव तले की दूब’, ‘सावधान नीचे आग है’, ‘धार’, ‘सूत्रधार’, ‘रह गईं दिशाएं उस पार’ से लेकर ‘फांस’ और नवीनतम ‘मुझे पहचानो’ जैसे कई उपन्यासों और ‘अपराध’, ‘आप यहाँ हैं’, ऑपरेशन जोनाकी’, और ‘तीस साल का सफ़रनामा’ जैसी कई यादगार कहानियों के साथ उन्होंने बहुत बड़ी तादाद में अपने पाठक और प्रशंसक जुटाए। उनके पूरे लेखन एक असंदिग्ध प्रगतिशील और वाम तेवर रहा। इस लिहाज से साहित्य अकादेमी सम्मान उनको बरसों पहले मिल जानी चाहिए था।