रघुवीर सहाय की कविता पंक्ति है- ‘लोकतंत्र का अंतिम क्षण है, कहकर आप हंसे।‘
असली सेंधमार को बचाने में जुटी है सरकार!
- विचार
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- 20 Dec, 2023

संसद की सुरक्षा में सेंधमारी हुई। विपक्ष इस पर संसद में चर्चा कराना चाहता है और गृहमंत्री से बयान की मांग कर रहा है? तो दिक्कत कहाँ है? आख़िर मोदी सरकार संसद में जवाब देने से क्यों बच रही है?
भारत के संसदीय लोकतंत्र के सिर पर यह पंक्ति किसी आपद संकेत की तरह घूम रही है। संसद में जिस तरह विपक्षी सांसदों को अनुशासन के नाम पर निलंबित किया जा रहा है, वह हतप्रभ करने वाला है। यह नया ‘अनुशासन पर्व’ है जिसमें यह तथ्य छुपा लिया जा रहा है कि सरकार संसद में संवाद से पीछा छुड़ा रही है। जैसे उसे विपक्ष मुक्त संसद चाहिए जहाँ वह बिना किसी अवरोध और प्रतिरोध के मनचाहे बिल पास करा सके।
लेकिन विपक्ष किस बात पर संवाद चाह रहा है? यह सवाल हंगामे में ग़ायब होता लग रहा है। संसद की सुरक्षा में चार नौजवानों ने जो सेंधमारी की, उस पर विपक्ष सरकार से जवाब चाहता है। वह चाहता है कि गृहमंत्री इस पर सदन में बयान दें। इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बाहर बयान दे रहे हैं, लेकिन संसद में कुछ बोलने को तैयार नहीं? क्या यह कोई असंसदीय या असंभव सी मांग है? गृहमंत्री जो बात बाहर कह रहे हैं, वह सदन के भीतर कह दें तो क्या हो जाएगा? सरकार इसके लिए तैयार क्यों नहीं हो रही?