जय श्रीराम आज की तारीख़ में एक राजनीतिक नारा भर नहीं है, वह अपने वर्चस्व का दंभ भरा उद्घोष भी है। इसे किसी इमारत को तोड़ते हुए, कोई दंगा करते हुए, कहीं आग लगाते हुए, किसी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते हुए- कहीं भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह उद्घोष किस तरह जाने-अनजाने एक नया अवचेतन बना रहा है, यह बीते दिनों ग़ाज़ियबाद के एक स्कूल में नज़र आया। एक बच्चे को पता नहीं क्या सूझी कि उसने अपनी डेस्क पर लिख दिया- जय श्रीराम।
शिक्षा पर धार्मिक वर्चस्ववाद का असर
- विचार
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- 10 Dec, 2023

आज जय श्रीराम का नाम लिखने का मामला है। कल जय श्रीराम को पढ़ाने का सवाल उठ सकता है। इसके बाद क्या धार्मिक मान्यताओं को वैज्ञानिक साबित करने का अधकचरा शास्त्र विकसित नहीं होने लगेगा?
बच्चे शरारतें करते हैं। शिक्षक ही उनके इम्तिहान नहीं लेते, वे भी कई बार शिक्षकों के धीरज का इम्तिहान ले लेते हैं। वे बोर्ड और बेंच पर भी तरह-तरह के अक्षर और चित्र उकेर दिया करते हैं। कभी वे बच निकलते हैं और कभी इसकी सज़ा पाते हैं। गाज़ियाबाद के स्कूल में डेस्क पर जय श्रीराम लिखने वाला बच्चा बच नहीं पाया। उसे शिक्षिका ने सज़ा दी- शायद कुछ सख़्त सज़ा।