अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन में न जाने का फ़ैसला कर कांग्रेस नेताओं ने एक विवेकपूर्ण निर्णय लिया है। कांग्रेस नेता अगर इस अवसर पर जाते तो वे उस विभाजनकारी राजनीति को ही एक तरह की मौन स्वीकृति दे रहे होते जो भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस मुद्दे पर की है- बार-बार ये दुहराते रहने के बावजूद कि राम मंदिर राजनीति का नहीं, आस्था का विषय है।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा - देर से उठा कांग्रेस का सही क़दम
- विचार
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- 29 Mar, 2025

देश का लोकतंत्र अहम है या फिर धर्म की राजनीति? लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण अस्वीकार कर कांग्रेस ने क्या संदेश दिया है?
राजनीतिक ढंग से सोचें तो क्या इससे कांग्रेस को वोटों का नुक़सान होगा? इसका कोई तर्क बनता नहीं दीखता। जो लोग कांग्रेस के राम मंदिर उद्घाटन में जाने पर ख़ुश होते वे दरअसल वही लोग हैं जिन्हें बीजेपी की राजनीति के लिए सबकी स्वीकृति चाहिए। ऐसा नहीं होता कि उनमें से कुछ लोग कांग्रेस के पक्ष में वोट करने लगते- वोट उनका बीजेपी को ही जाता- यह बताते हुए कि कांग्रेस तो राम मंदिर राजनीति में बस दिखाऊ सहभागिता कर रही है।