गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ को उसके अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम ऑफ़ सैंड’ के लिए मिले अंतरराष्ट्रीय बुकर सम्मान के आम तौर पर स्वागत के अलावा जो चित्र-विचित्र क़िस्म की प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं, उनमें तीन बातें ध्यान देने योग्य हैं। पहली बात यह कही जा रही है कि इतनी महत्वपूर्ण लेखिका को हिंदी साहित्य और आलोचकों ने उपेक्षित रखा। यह राय रखने वाले लोग दरअसल समकालीन हिंदी साहित्य से क़तई परिचित नहीं हैं। वरना उन्हें मालूम होता कि हिंदी में नब्बे के दशक में उभरे जिन कथाकारों की बहुत सम्मान के साथ चर्चा होती रही है, उनमें गीतांजलि श्री हैं। उनकी पहली तीन कहानियाँ हिंदी की सबसे चर्चित साहित्यिक पत्रिका ‘हंस’ में छपी।