दिल्ली के बीकानेर हाउस में तीन दिन चले हंस महोत्सव की सबसे ख़ास बात क्या थी? हिंदी में संभवतः पहली बार ऐसा आयोजन हो रहा था जिसमें अस्सी फ़ीसदी से ज़्यादा भागीदारी महिलाओं की थी। इन तीन दिनों में 12 वैचारिक सत्र हुए और तीन सांस्कृतिक आयोजन, जिनमें कुल 80 से ज़्यादा वक्ताओं या कलाकारों ने हिस्सा लिया। इनमें दस-बारह वक्ताओं को छोड़ कर सभी महिलाएं थीं। उन्होंने स्त्री लेखन पर बात की, स्त्रियों की बराबरी और आज़ादी के सवाल पर चर्चा की, यह देखने-समझने की कोशिश की कि जीवन और समाज में स्त्रियां कहां-कहां और कैसे-कैसे तोड़ी जाती हैं, यह भी समझा कि वे आलोचना में उतरती हैं तो लेखकों और रचनाओं को कैसे देखती हैं। इसके अलावा दलित लेखन की चुनौतियों- और ख़ासकर - दलित लेखिकाओं की दोहरी चुनौतियों पर विस्तार में बात हुई।
स्त्री-सृजन का सारा आकाश और हंस का समारोह
- साहित्य
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- 31 Nov, 2022

हिंदी में महिला लेखकों की भूमिका पर हंस उत्सव का आयोजन हुआ। जानिए इसमें क्या चर्चा हुई और स्त्री-सृजन को लेकर किन-किन लेखकों ने क्या विचार रखे।
यह पूरा आयोजन स्त्री रचनाशीलता पर केंद्रित था। आयोजन में फिल्म, रंगमंच और प्रकाशन से जु़ड़े सवाल भी शामिल थे। फिल्मों में बदलती स्त्री छवि पर चर्चा हुई तो फिल्म निर्माण में स्त्रियों के दखल से बदलती दुनिया पर भी बात हुई। रंगमंच में स्त्रियों का जिक्र चला और स्त्रियों के रंगमंच तक जा पहुंचा। इसके अलावा लेखन, प्रकाशन और लिटररी एजेंट की ज़रूरत जैसे मसलों पर भी समारोह में बात हुई।