दिल्ली के बीकानेर हाउस में तीन दिन चले हंस महोत्सव की सबसे ख़ास बात क्या थी? हिंदी में संभवतः पहली बार ऐसा आयोजन हो रहा था जिसमें अस्सी फ़ीसदी से ज़्यादा भागीदारी महिलाओं की थी। इन तीन दिनों में 12 वैचारिक सत्र हुए और तीन सांस्कृतिक आयोजन, जिनमें कुल 80 से ज़्यादा वक्ताओं या कलाकारों ने हिस्सा लिया। इनमें दस-बारह वक्ताओं को छोड़ कर सभी महिलाएं थीं। उन्होंने स्त्री लेखन पर बात की, स्त्रियों की बराबरी और आज़ादी के सवाल पर चर्चा की, यह देखने-समझने की कोशिश की कि जीवन और समाज में स्त्रियां कहां-कहां और कैसे-कैसे तोड़ी जाती हैं, यह भी समझा कि वे आलोचना में उतरती हैं तो लेखकों और रचनाओं को कैसे देखती हैं। इसके अलावा दलित लेखन की चुनौतियों- और ख़ासकर - दलित लेखिकाओं की दोहरी चुनौतियों पर विस्तार में बात हुई।