क्या हमारे समाज में किसी हिंदू को उसकी जाति से परे रखकर देखना संभव है? बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर जब जात-पांत तोड़क मंडल के सम्मेलन के लिए अपना अध्यक्षीय वक्तव्य तैयार कर रहे थे तभी उन्होंने यह सवाल उठाया था। उनका कहना था कि हिंदू समाज के भीतर रह कर जाति तोड़ना संभव नहीं है। जाति तोड़नी है तो हिंदू धर्म को तोड़ना होगा। इस वक्तव्य से जात-पांत तोड़ो मंडल इतना दुखी हुआ कि उसने आंबेडकर से ही नाता तोड़ लिया, उन्हें अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव वापस ले लिया। बाद में यही वक्तव्य 'जाति का विनाश' नाम से पुस्तक के रूप में छपा।