त्रिवेणी नाट्य समारोह में बहुचर्चित नाटक ‘बुड्ढा मर गया’ का मंचन हुआ। शानदार प्रस्तुति, गहरे सामाजिक संदेश और सशक्त अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
हबीब तनवीर का प्रसिद्ध नाटक ‘आगरा बाज़ार’ मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी की ज़िंदगी और उनकी शायरी पर आधारित था। जानें इस नाटक की खासियत और इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में।
दोस्तोवस्की की कालजयी रचना 'ह्वाइट नाइट्स' के मंचन ने दर्शकों को उजली स्वप्निल रातों की दुनिया में ले जाकर प्रेम, अकेलेपन और आशा की गहरी अनुभूति कराई। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
'मंकी एंड द क्रोकोडाइल' पुतली खेल केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि लोककला, परंपरा और रचनात्मकता का संगम है। जानें इस अनूठे नाटक के पीछे की कला, संदेश और इसकी बच्चों व बड़ों के लिए अहमियत।
नुपूर चिताले के नाटक 'जलेबी' में आधुनिक महिला की आकांक्षाओं और समाज में उसकी भूमिका को कबीर के विचारों से जोड़ा गया है। पढ़िए, रवींद्र त्रिपाठी की टिप्पणी।
मोहन राकेश के नाटक 'आधे अधूरे' का भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान है। यह नाटक पारिवारिक संघर्ष, सामाजिक असंतोष और यथार्थवाद को गहराई से उजागर करता है। जानिए इसकी अद्वितीयता।
भारंगम 2025 में ‘कर्ण’ नाटक का मंचन किया गया। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की गाथा को प्रस्तुत किया गया है। पढ़िए, इस नाट्य प्रस्तुति की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से...
`बिदेसिया’ लोकनाटक नहीं है, एक आधुनिक नाटक है। रूसी लेखक अंतोन चेखव का लिखा `अंकल वान्या’ सर्वसम्मत रूप से आधुनिक नाटक है। पढ़िए, इनके मंचन की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से...।
एलटीजी ऑडिटोरियम में जो नाटक मंचित हुआ वो हैमिल्टन के नाटक का हिंदी रूपांतर है। नाम वही है लेकिन रूपांतर बिल्कुल भारतीय परिवेश में किया गया। चार्ल्स शोभराज का मिथक बरकरार है!
शैलेश लोढ़ा वैसे तो छोटे पर्दे पर मनोरंजन के लिए मशहूर हैं, लेकिन उन्होंने दिल्ली के श्री राम सेंटर में `डैड्स गर्लफ्रेंड’ नाम के नाटक में काम किया। जानिए, कैसा है रहा उनका प्रदर्शन।
दिल्ली के कमानी सभागार में आद्यम थिएटर फेस्टिवल के दौरान अतुल कुमार द्वारा निर्देशित नाटक `द क्यूरियस इंसीडेंट ऑफ़ द डॉग इन द नाइट- टाइम’ का मंचन किया गया। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
निर्देशक राजेश तिवारी के निर्देशन में पिछले शनिवार दिल्ली के श्रीराम सेंटर में `नन्ही जान के दो हाथ’ एक ऐसा प्रयोग था जिसमें दो कहानियों को इस तरह मिलाया गया कि वे अलग-अलग लगी ही नहीं। पढ़िए रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
युवा रंगकर्मी दिव्यांशु कुमार ने दिल्ली की `क्षितिज’ रंगमंडली के लिए पिछले दिनों श्रीराम सेंटर में `हैमलेट’ नाटक को रूपांतरित करके `दार्जिलिंग वेनम’ नाम से मंचन किया। पढ़िए, रवींद्र त्रिपाठी की समीक्षा।
आज इंडोनेशिया में जिस छाया- पुतली नाटकों की काफी लोकप्रियता है वो ओडिशा से ही गया है। तो आज़ादी के बाद देश के कुछ हिस्सों में जो आधुनिक रंग-आंदोलन शुरू हुआ वो ओडिशा को उस तरह प्रभावित क्यों नहीं कर सका?
रूस की लेखिका जरीना कनुकोवा के चार नाटकों का संग्रह `दास्तान ए दिल’ नाम से हिंदी में अनुदित होकर आया है। इसी संग्रह के एक नाटक `बात पुराने जमाने की है और हमेशा’ का मंचन पिछले हफ्ते दिल्ली के रूसी सांस्कृतिक केंद्र में हुआ।
अमृतसर के रंगकर्मी राजिंदर सिंह के निर्देशन में पिछले हफ्ते दिल्ली के लिटल थिएटर ग्रूप सभागार में `पाताल लोक का देव’ नाटक खेला गया जो मंटो के समानांतर संसार को दिखाता है।
इतना तो कहा ही जा सकता है कि नुक्कड़ नाटक की प्रकृति बदल गई है और ये एक तरह का लघु उद्योग भी बन गया है। बेरोजगारों की कमाई का माध्यम भी। या ये कहें कि अस्थायी रोजगार बन गया है।