अमृतसर के रंगकर्मी राजिंदर सिंह के निर्देशन में पिछले हफ्ते दिल्ली के लिटल थिएटर ग्रूप सभागार में `पाताल लोक का देव’ नाटक खेला गया जो मंटो के समानांतर संसार को दिखाता है।
इतना तो कहा ही जा सकता है कि नुक्कड़ नाटक की प्रकृति बदल गई है और ये एक तरह का लघु उद्योग भी बन गया है। बेरोजगारों की कमाई का माध्यम भी। या ये कहें कि अस्थायी रोजगार बन गया है।
राजेश तिवारी द्वारा लिखित और उनके निर्देशन में श्रीराम सेंटर में हुए नाटक `नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है’ में लैंगिक विमर्श के ऐसे कई मसले उभरते हैं।
औरत की अस्मिता कब बदलती है। इस अस्मिता का का रिश्ता राष्ट्र, जाति, देश आदि से भी होता है? रंगकर्मी सविता रानी ने अपने नाटक के जरिये इन सवालों का जवाब देने की कोशिश की है।
महाराष्ट्र के चंद्रपुर की लोकजागृति संस्था ने पिछले दिनों दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में अनिरुद्ध वनकर ने `गांधी कभी मरते नहीं’ नाटक खेला। जानिए, इस नाटक में गांधी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचारों पर कैसी चोट की गई है।
कई कला व्यक्तित्व ऐसे होते हैं जिनके योगदान को समझने या उनके आकलन के लिए एकाधिक दृष्टिकोणों की जरूरत होती है। ऐसी ही एक रंगमंच शख्सियत हैं रेखा जैन (1924- 2010) जिनकी अभी जन्मशती चल रही है और जिनको लेकर अभी दिल्ली में कई कार्यक्रम हो रहे हैं।
पढ़िए, मानव कौल द्वारा निर्देशित, अभिनीत और लिखित `त्रासदी’ और सपन सरन द्वारा लिखित और श्रीनिवास बिसेट्टी द्वारा निर्देशित `वेटिंग फॉर नसीर’ नाटक का मंचन कैसा रहा।
अकबर इलाहाबादी हिन्दी के कवि थे या उर्दू के शायर थे। उनकी तमाम शायरी जनमानस में एक किंवदन्ती की तरह बोली-कही जाती है। ऐसा दर्जा कम ही शायरों या कवियों को मिलता है। अकबर इलाहाबादी की जिन्दगी पर इस हफ्ते श्रीराम सेंटर दिल्ली में खेला गया नाटक इस मायने में बेजोड़ है कि वो अकबर साहब की शायरी के बारे में बल्कि उनकी जिन्दगी के बारे में तमाम बातों की जानकारी देता है। रंगमंच पर अपनी कलम चलाने वाले वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र त्रिपाठी बता रहे हैं इस नाटक के बारे मेंः
पंचानन पाठक उन लोगों में हैं जिन्होंने आधुनिक रंगकर्म को, खासकर इलाहाबाद और दिल्ली में, प्रगतिशील चेतना से लैस किया। पढ़िए, उनकी याद में होने वाले समारोह के बारे में।
वीरेंद्र नारायण का आधुनिक हिंदी और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उनका एक बड़ा योगदान था। जानिए, उनकी जन्मशती पर रवींद्र त्रिपाठी उनको कैसे याद करते हैं।
पिछले हफ्ते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्रों ने अभिमंच सभागार में असम की `अंकिया भावना’ रंग परंपरा का प्रशिक्षण पाने के बाद `राम विजय’ नाटक का मंचन किया।
रंगमंच, संगीत, नृत्य या दूसरे सांस्कृतिक आयोजनों के लिए इस पोर्टल पर आवेदन देना होगा और हर प्रस्तुति के लिए एक हजार रुपए का शुल्क देना होगा। क्या इस नियम के बाद पहले से ही तंग रंगमंच कैसे भार सह पाएगा?
अल्काज़ी की एक जीवनी – `इब्राहीम अल्काज़ी : होल्डिंग टाइम कैप्टिव’ आई है जिसे उनकी पुत्री और शिष्या अमाल अल्लाना ने लिखा है। जानिए अलकाज़ी का कैसा चित्रण किया गया है पुस्तक में।
क्रोएशियाई नाटककार मिरो गावरान के नाटक भारत में भी धीरे-धीरे चर्चित हो रहे हैं। यहां पर द डॉल (गुड़िया) नाटक के बहाने मिरो गावरान के काम पर बात हो रही है। जानिएः
मामला धीरे-धीरे पूरे हिमालय क्षेत्र को बचाने का होता जा रहा है। इसलिए रंगमंच और नाटक जैसे सांस्कृतिक कर्म की जिम्मेदारी भी बनती है। पढ़िए, `जंगल में बाघ नाचा’ के नाट्य मंचन में प्रकृति को कैसे दिखाया गया।
पिछले दिनों राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल ने देवेंद्र राज अंकुर के निर्दशन में धर्मवीर भारती की कहानी `बंद गली का आखिरी मकान’ का मंचन किया। पढ़िए इस नाट्य मंचन की समीक्षा।
पिछले हफ्ते इंडिया हैबिटेट सेंटर में खेला गया नाटक `चाय कहानी’ एक अभिनव प्रयोग था। अटेलियर नाट्य मंडली के कुलजीत सिंह और मानसी ग्रोवर के निर्देशन में नाटक का मंचन हुआ। पढ़िए समीक्षा।
इरशाद खान सिकंदर का एक नया नाटक भी रंगमंच पर आ चुका है जिसका नाम है `ठेके पर मुशायरा।‘ इसे युवा रंगकर्मी दिलीप गुप्ता ने निर्देशित किया है। पढ़िए, इसकी समीक्षा।
सुरेखा सीकरी (1945-2021) घर-घर में पहचानी जाने वाली अभिनेत्री थीं और ऐसा हुआ धारावाहिक ‘बालिका वधू’, की वजह से जिसमें उन्होंने कल्याणी सिंह उर्फ दादी-सा का किरदार निभाया था।