अक्सर ऐसी कहानियाँ सुनने-पढ़ने और देखने को मिलती हैं कि किसी का लिखा किसी और नाम से छपा। इसके पीछे कई बार लेखक की मजबूरी होती है और गरीबी या किसी और कारणवश वो अपना लिखा हुआ अपने नाम से नहीं छपता पाता। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के आरंभिक चरण के प्रसिद्ध हिंदी फिल्मकार गुरुदत्त ने जब `प्यासा’ फिल्म बनाई थी तो उसका विषय कुछ ऐसा ही था। पूरी तरह से तो नहीं लेकिन कुछ कुछ उसी तरह का विषय देखने को मिला श्रीराम सेंटर में खेले गए नाटक `चौथी सिगरेट’ में जिसके लेखक योगेश त्रिपाठी हैं और जिसका निर्देशन दानिश इकबाल ने किया।