अक्सर ऐसी कहानियाँ सुनने-पढ़ने और देखने को मिलती हैं कि किसी का लिखा किसी और नाम से छपा। इसके पीछे कई बार लेखक की मजबूरी होती है और गरीबी या किसी और कारणवश वो अपना लिखा हुआ अपने नाम से नहीं छपता पाता। बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के आरंभिक चरण के प्रसिद्ध हिंदी फिल्मकार गुरुदत्त ने जब `प्यासा’ फिल्म बनाई थी तो उसका विषय कुछ ऐसा ही था। पूरी तरह से तो नहीं लेकिन कुछ कुछ उसी तरह का विषय देखने को मिला श्रीराम सेंटर में खेले गए नाटक `चौथी सिगरेट’ में जिसके लेखक योगेश त्रिपाठी हैं और जिसका निर्देशन दानिश इकबाल ने किया।
गरीबी, अभावग्रस्तता के बीच फँसे एक लेखक के लेखन का सौदा!
- विविध
- |
- |
- 22 Dec, 2024

श्रीराम सेंटर में `चौथी सिगरेट’ नाटक खेला गया। इसके लेखक योगेश त्रिपाठी हैं और इसका निर्देशन दानिश इकबाल ने किया। पढ़िए, नाटक के मंचन की समीक्षा।
`चौथी सिगरेट’ में भी एक लेखक की कहानी है जिसका नाम है वीरेश्वर सेनगुप्ता। वीरेश्वर एक लिक्खाड़ उपन्यासकार है लेकिन मुश्किल ये कि उसकी रचनाएं छप नहीं पा रही हैं और वो मुफलिसी का जीवन जी रहा है। घर की माली हालत ख़राब है। बेटा इंजीनिरिंग की पढ़ाई कर चुका है, लेकिन बेरोजगार है और कमाई धमाई के लिए किराने की दुकान खोल ली है। दो बेटियां हैं जो अक्सर इसी बात की शिकायत करती रहती हैं कि उनके पास ढंग के कपड़े नहीं हैं। पत्नी शारदा अच्छी है लेकिन वो भी बहुत खुश नहीं है।