खोजों की टाइमलाइन को लेकर पूर्वानुमान लगाने से वैज्ञानिक अभी बचने लगे हैं। कारण यह कि न्यूक्लियर फ्यूजन और ‘रूम टेंपरेचर सुपरकंडक्टिविटी’ जैसी कुछ पूर्वघोषित परियोजनाएं दिनोंदिन आगे ही टलती जा रही हैं जबकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे कुछेक क्षेत्रों में तरक्की की रफ्तार अचानक तेज हो गई है। लेकिन अपनी बात कट जाने की शर्मिंदगी जैसी समस्याएं वास्तविक बुद्धि से जुड़ी हैं। कृत्रिम बुद्धि के साथ ऐसी कोई समस्या नहीं है। यही वजह है कि डीपमाइंड, गूगल की सबसे ताकतवर एआई ने हाल में 145 पेज के अपने एक शोधपत्र में भविष्यवाणी की है कि 2030 आते-आते आर्टिफिशियल जनरल इंटेलिजेंस का कोई न कोई रूप अस्तित्व में आ जाएगा।