राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के पूर्व निदेशक देवेंद्र राज अंकुर पिछले लगभग पचास- बावन बरसों से हिंदी रंगमंच पर सक्रिय हैं। एक रंगमंच-प्रशिक्षक के रूप में भी और एक नाट्य निर्देशक के तौर पर भी। जब कोई निर्देशक इतने लंबे समय तक लगातार सक्रिय रहेगा तो एक सवाल तो ज़रूर ही पूछा जाएगा कि इस कालखंड में क्या उसका कोई निजी मुहाबरा बन पाया? अंकुर जी के सिलसिले में इस सवाल का जवाब होगा- `हां’। उन्होंने पचास साल पहले हिंदी कहानियों को रंगमंच पर पेश करने का जो सिलसिला शुरू किया वो `कहानी का रंगमंच’ नाम से मशहूर हो गया। हालाँकि ऐसा नहीं था कि उनके पहले कहानियों को आधार पर बनाकर नाटक नहीं हुए। ज़रूर हुए। बाद में भी हुए। पर अंकुर जी ने जिस निरंतरता और निष्ठा के साथ कहानियों को मंच पर लाया वो समकालीन हिंदी रंगमंच की एक विशिष्ट धारा बन चुकी है। उनके द्वारा निर्देशित कहानियों की गणना की जाए तो ये संख्या पांच सौ से ज्यादा होगी। ये गिनती भी उन्होंने खुद बताई है। ये संख्या अपने में खुद बहुत कुछ कहती है। पर सिर्फ संख्या नहीं गुणवत्ता की दृष्टि से भी उनका काम सराहनीय है।
ताज़ा ख़बर ये है कि देवेंद्र राज अंकुर के कहानियों के रंगमंच के पचास साल पूरे हो गए। एक मई 1975 को निर्मल वर्मा की तीन कहानियों- `धूप का एक टुकड़ा’, `डेढ़ इंच ऊपर’ और `वीकेंड’ को आधार बनाकर `तीन एकांत’ नाम की प्रस्तुति उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के रंगमंडल के कलाकारों के साथ रवीन्द्र भवन के स्टूडियो थिएटर में की थी। तब रंगमंडल वहीं था। यहीं से वो शुरुआत हुई थी जिसे अंकुर जी के प्रसंग में `कहानी का रंगमंच’ कहा गया। आज उसके पचास साल हो चुके हैं। इसी को रेखांकित करने के लिए `मेलोरंग’ की तरफ से `कथारंग’ नाम से पांच दिनों का एक रंग- आयोजन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के परिसर में 26 से 30 अप्रैल 2025 तक हो रहा है जिसको `कहानी रंगमंच का स्वर्णोत्सव’ नाम दिया गया है।