इस बार त्रिवेणी नाट्य समारोह का समापन दादी पदमजी की पुतली प्रस्तुति `रूमियाना’ से हुआ जो सूफी शायर जलालुद्दीन रूमी के जीवन दर्शन से प्ररित है। हालाँकि ये लगभग तीन साल पुरानी प्रस्तुति है और कई जगहों पर दिखाई जा चुकी है। फिर भी इसमें ताजगी थी। सूफी संत रूमी की शायरी का संग्रह विशाल है और लगभग एक घंटे के शो में उनको समेटना बहुत कठिन है। लेकिन समानांतर रूप से ये भी सही है कि इस महान सूफी संत की हर रचना में इतना कुछ है कि एक को भी पढ़ या सुन लें तो ये अंदाजा हो जाता है कि एक छोटे से अंश में विराट समुद्र समाया हुआ है।
रूमी, रूमियाना और पुतली कला!
- विविध
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- 5 Apr, 2025

सूफ़ी कवि रूमी, पारंपरिक रूमियाना और पुतली कला के बीच क्या है संबंध? जानें इनकी सांस्कृतिक गहराई और ऐतिहासिक महत्व।
`रूमियाना’ में रूमी की शायरी भी है, पुतलियां भी हैं, एनिमेशन भी है, अभिनेता भी हैं, संगीत भी है। दूसरी तरह से कहें तो ये पुतली केंद्रित एक मल्टीमीडिया प्रोडक्शन है। और ये सारा कुछ रूमी की एक कविता को समझने और समझाने की कोशिश के सिलसिले में है। या ये कहें कि उसे व्याख्यायित करने की प्रक्रिया में जीवन सत्य पाने का प्रयास है। कविता का अंग्रेजी में शीर्षक है- `हू इज एट माई डोर’। हिंदी में इसका मुक्त अनुवाद `कौन दरवाजे पर दस्तक दे रहा है’ नाम से किया गया है। ये कविता गुरु-शिष्य के बीच सवाल-जवाब के रूप में है। पर सवालों और जवाबों की इस प्रक्रिया में ज़िंदगी के मायने खुलते जाते हैं। पर क्या वो पूरी तरह खुल पाते हैं? शायद नहीं और शायद हां।