जब किसी बड़े व्यक्ति पर आधारित कोई सफल नाटक होता है तो उसकी याद हमेशा बनी रहती है। नाटक की भी और व्यक्ति की भी। लेकिन साथ-साथ ये भी होता है कि उस व्यक्ति के बारे में कई तरह की जिज्ञासाएँ भी सक्रिय हो जाती हैं। सहृदय समाज के मन में ये प्रश्न उठने लगते हैं कि जिस शख्स को लेकर नाटक हुआ, उसने और क्या क्या किया? फिर इसी कड़ी में ये भी संभावना बनती जाती है कि उस व्यक्ति को केंद्र मे रखकर कोई और भी नया नाटक हो। नज़ीर अकबराबादी (1735-1830) के साथ भी यही हो रहा है।