कहानी पहले किसी एक देश या स्थान की होती है। वहीं की भाषा में लिखी या कही जाती है। लेकिन वहां की होकर भी वो सिर्फ वहीं की नहीं होती। वो दूर देशों की यात्रा पर चली जाती है। जिस देश में पहुंचती है वहां भी लोगों के दिल में जगह बना लेती है। वहां की भाषा में ढल जाती है। वहां की दंतकथाओं से उसका याराना भी हो जाता है। वहां की किस्सागोई शैली से घुलमिल जाती है। वो कहानी वहां की कविताओं से भी दोस्ती गांठ लेती है। इस प्रक्रिया में उसका रूप थोड़ा बदल भी जाता है। मगर थोड़ा बदलकर अपनी मूल आत्मा को बचाए भी रखती है। या ये कहें कि उसका आत्मविस्तार हो जाता है।
`ह्वाइट नाइट्स’ का मंचन: उजली स्वप्निल रातें और दोस्तोवस्की
- विविध
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- रवीन्द्र त्रिपाठी
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- 14 Mar, 2025


रवीन्द्र त्रिपाठी
दोस्तोवस्की की कालजयी रचना 'ह्वाइट नाइट्स' के मंचन ने दर्शकों को उजली स्वप्निल रातों की दुनिया में ले जाकर प्रेम, अकेलेपन और आशा की गहरी अनुभूति कराई। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
फ्योदोर दोस्तोवस्की की कहानी `ह्वाइट नाइट्स’ के साथ भी हाल में वही हुआ जब आद्यम नाटक समारोह में युवा रंगकर्मी पूर्वा नरेश ने इसे आधार बनाकर एक नाटक किया। उन्नीसवीं सदी में रूसी में लिखी जाने के बावजूद `ह्वाइट नाइट्स’ पूरी दुनिया में छा चुकी है। बतौर कहानी तो ये पूरी दुनिया में पढ़ी जाती रही है, साथ ही कई भाषाओं में इस पर फ़िल्में भी बनी हैं। भारत में भी कुछ साल पहले संजय लीला भंसाली ने हिंदी में इसी पर `सांवरिया’ फिल्म बनाई थी जिसमें रनबीर कपूर और सोनम कपूर प्रमुख किरदार थे। पर इस कहानी पर कोई नाटक नहीं हुआ है। कम से कम भारत में तो नहीं हुआ है।