कहानी पहले किसी एक देश या स्थान की होती है। वहीं की भाषा में लिखी या कही जाती है। लेकिन वहां की होकर भी वो सिर्फ वहीं की नहीं होती। वो दूर देशों की यात्रा पर चली जाती है। जिस देश में पहुंचती है वहां भी लोगों के दिल में जगह बना लेती है। वहां की भाषा में ढल जाती है। वहां की दंतकथाओं से उसका याराना भी हो जाता है। वहां की किस्सागोई शैली से घुलमिल जाती है। वो कहानी वहां की कविताओं से भी दोस्ती गांठ लेती है। इस प्रक्रिया में उसका रूप थोड़ा बदल भी जाता है। मगर थोड़ा बदलकर अपनी मूल आत्मा को बचाए भी रखती है। या ये कहें कि उसका आत्मविस्तार हो जाता है।
फ्योदोर दोस्तोवस्की की कहानी `ह्वाइट नाइट्स’ के साथ भी हाल में वही हुआ जब आद्यम नाटक समारोह में युवा रंगकर्मी पूर्वा नरेश ने इसे आधार बनाकर एक नाटक किया। उन्नीसवीं सदी में रूसी में लिखी जाने के बावजूद `ह्वाइट नाइट्स’ पूरी दुनिया में छा चुकी है। बतौर कहानी तो ये पूरी दुनिया में पढ़ी जाती रही है, साथ ही कई भाषाओं में इस पर फ़िल्में भी बनी हैं। भारत में भी कुछ साल पहले संजय लीला भंसाली ने हिंदी में इसी पर `सांवरिया’ फिल्म बनाई थी जिसमें रनबीर कपूर और सोनम कपूर प्रमुख किरदार थे। पर इस कहानी पर कोई नाटक नहीं हुआ है। कम से कम भारत में तो नहीं हुआ है।
इस लिहाज से पूर्वा पहली भारतीय रंगकर्मी हैं जिसने दोस्तोवस्की की इस कहानी को मंच पर उतारा। नाट्य रूपांतर पूर्वा ने खुद ही किया। और ऐसा करते हुए उसमें भारतीय रस भी मिला दिए। मतलब, हिंदी के कवियों- अशोक वाजपेयी, केदार नाथ सिंह, विनोद कुमार शुक्ल की कविताओं का भी यथास्थान मिश्रण किया। एक रूसी कहानी भारतीय भी बन गई पर उसका रूसीपन बरकरार रखा गया। पात्रों के नाम रूसी ही रखे गए पर एक पात्र भारतीय भी है। घटनाएँ भी रूसी शहर सेंट पीटसबर्ग में ही घटती हैं। लेकिन आज की दुनिया में प्रवासियों के मुद्दे भी इसमें आते हैं। किसानों की समस्याएँ भी। और ये सब होता है सहज तरीक़े से। पूर्वा पहले भी साबित कर चुकी हैं कि बतौर निर्देशक वो एक ग़ज़ब की किस्सागो भी हैं। एक कालजयी रूसी कहानी को उन्होंने इस तरह संवारा है कि दर्शक अपने को उन्नीसवीं सदी के रूस में भी मौजूद महसूस करता है और आज के भारत में भी।
यहां `ह्वाइट्स नाइट्स’ के कथा सार को जानना थोड़ा ज़रूरी होगा। रूस के सेंट पीटसबर्ग शहर में जून महीना ऐसा वक्त होता है जब रात में सूरज पूरी तरह डूबता नहीं है। जैसे गोधूलि के समय हल्की रोशनी रहती है वैसा ही उन महीने में सेंट पीटसबर्ग में रात भर होती है। ये कहानी भी ऐसे ही रातों पर आधारित है इसीलिए इसका नाम `ह्वाइट नाइट्स’ है। (हिंदी में इस कहानी का अनुवाद रजत रातें नाम से हुआ है।) इन्हीं रातों में इस कहानी का वाचक (जिसका कोई नाम नहीं है) नास्तेंका नाम की एक लड़की को देखता है जो एक पुल पर चली जा रही थी। जब वाचक एक शराबी को उस लड़की की तरफ बढ़ते हुए देखता है तो उसे आशंका होती है दोनों टकरा न जाएं, इसलिए वो बीच में आ जाता है। शराबी लड़की से नहीं टकरा पाता। फिर उस लड़की से उसकी दोस्ती हो जाती है।
`ह्वाइट नाइट्स’, एक प्रेम कहानी है। और जैसा कि सभी महान प्रेम कहानियों के साथ होता रहा है, सभी एक दूसरे जैसी भी होती हैं और एक दूसरे से अलग भी।

मंत्रमुग्ध ने अपने चरित्र में जज्बाती पहलू पर जोर दिया और दानिश हुसैन कथावाचक के रूप में वनामुक्त रहे। नास्तेंका की भूमिका में गिरिजा ओक.गोडबोले ने अपने किरदार के अनुरूप ऐसी प्रेमिका की भूमिका निभाई है जो अपने प्रेमी को पाने के लिए निरंतर प्रयास करती है। एक निष्ठावान प्रेमिका।
जैसा कि पहले कहा गया पूर्वा ने दोस्तोवस्की की इस कहानी को नाटक में बदलते हुए इस प्रेम कहानी में अन्य प्रकरण भी जोड़े हैं। कई अन्य नाटकीय युक्तियों का भी प्रयोग किया गया है जिससे नाटक का प्रभाव विस्तारित भी हो गया है। संगीत और वस्त्र सज्जा भी आकर्षक है। खंडहर वाले दृश्य का कुछ कुछ इंद्राजालिक सा प्रभाव भी पैदा हो गया है। नाटक मूल कहानी की तरह स्वप्निल ही है। ये दोस्तोवस्की का भारतीय संस्करण है।
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