इन दिनों एक ‘ग़ैर-ज़रूरी’ बहस चल रही है। बहस मुफ़्त के सोशल मीडिया पर ज़्यादा है और हमारे समय के लब्ध-प्रतिष्ठित कवि, कथाकार और उपन्यासकार 88-वर्षीय विनोद कुमार शुक्ल पर केंद्रित है। बहस शुक्ल जी को हाल ही में ज्ञानपीठ पुरस्कार दिये जाने की घोषणा के साथ प्रारंभ हुई है।
विनोद कुमार शुक्ल पर बहस: ‘इतनी उदासीनता कहाँ से आती है?’
- विविध
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- 28 Mar, 2025

साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल को लेकर बहस तेज़ है कि आख़िर उनके लेखन और समाज की प्रतिक्रिया में इतनी उदासीनता क्यों? जानिए इस बहस के पीछे की वजहें और प्रतिक्रियाएँ।
बहस के मूल में एक ऐसा सवाल है जो इस तरह के अवसरों पर कई बार पहले भी उठाया जा चुका है और आगे भी उठाया जाता रहेगा! मानवाधिकारों की लड़ाई में सक्रिय एक कार्यकर्ता ने सोशल मीडिया पर जारी अपनी एक पोस्ट में सवाल उठाया था कि :’शुक्ल जी के ठिकाने से महज़ सौ किलोमीटर दूर बस्तर में जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा में लगे आदिवासियों/माओवादियों के ख़िलाफ़ सरकार का क्रूर दमन चक्र चल रहा है। कई लोग मारे गए हैं, कई गिरफ़्तार किए गए हैं। जो लड़ रहे हैं वे तेलुगू/अंग्रेज़ी में शानदार साहित्य भी रच रहे हैं। लेकिन शुक्ल जी के पूरे साहित्य से यह ‘झंझावात’ ग़ायब है।’ जो सवाल पूछा गया उसकी ‘पंचलाइन’ यह थी कि :’इतनी उदासीनता कहाँ से आती है?’