आज इंडोनेशिया में जिस छाया- पुतली नाटकों की काफी लोकप्रियता है वो ओडिशा से ही गया है। तो आज़ादी के बाद देश के कुछ हिस्सों में जो आधुनिक रंग-आंदोलन शुरू हुआ वो ओडिशा को उस तरह प्रभावित क्यों नहीं कर सका?
रूस की लेखिका जरीना कनुकोवा के चार नाटकों का संग्रह `दास्तान ए दिल’ नाम से हिंदी में अनुदित होकर आया है। इसी संग्रह के एक नाटक `बात पुराने जमाने की है और हमेशा’ का मंचन पिछले हफ्ते दिल्ली के रूसी सांस्कृतिक केंद्र में हुआ।
राजेश तिवारी द्वारा लिखित और उनके निर्देशन में श्रीराम सेंटर में हुए नाटक `नारी बीच सारी है कि सारी बीच नारी है’ में लैंगिक विमर्श के ऐसे कई मसले उभरते हैं।
महाराष्ट्र के चंद्रपुर की लोकजागृति संस्था ने पिछले दिनों दिल्ली के त्रिवेणी कला संगम में अनिरुद्ध वनकर ने `गांधी कभी मरते नहीं’ नाटक खेला। जानिए, इस नाटक में गांधी के ख़िलाफ़ दुष्प्रचारों पर कैसी चोट की गई है।
पढ़िए, मानव कौल द्वारा निर्देशित, अभिनीत और लिखित `त्रासदी’ और सपन सरन द्वारा लिखित और श्रीनिवास बिसेट्टी द्वारा निर्देशित `वेटिंग फॉर नसीर’ नाटक का मंचन कैसा रहा।
ग़ज़ल की यात्रा को नाटक “दाखिल ख़ारिज” में समेटने की कोशिश की गयी है। ग़ज़ल की यात्रा शुरू होती है प्रारंभिक लेखक मीर तक़ी मीर, ज़ौक़, और ग़ालिब जैसे लेखकों से।
पंचानन पाठक उन लोगों में हैं जिन्होंने आधुनिक रंगकर्म को, खासकर इलाहाबाद और दिल्ली में, प्रगतिशील चेतना से लैस किया। पढ़िए, उनकी याद में होने वाले समारोह के बारे में।
वीरेंद्र नारायण का आधुनिक हिंदी और भारतीय रंगमंच के क्षेत्र में उनका एक बड़ा योगदान था। जानिए, उनकी जन्मशती पर रवींद्र त्रिपाठी उनको कैसे याद करते हैं।
पिछले हफ्ते राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के प्रथम वर्ष के छात्रों ने अभिमंच सभागार में असम की `अंकिया भावना’ रंग परंपरा का प्रशिक्षण पाने के बाद `राम विजय’ नाटक का मंचन किया।
मामला धीरे-धीरे पूरे हिमालय क्षेत्र को बचाने का होता जा रहा है। इसलिए रंगमंच और नाटक जैसे सांस्कृतिक कर्म की जिम्मेदारी भी बनती है। पढ़िए, `जंगल में बाघ नाचा’ के नाट्य मंचन में प्रकृति को कैसे दिखाया गया।