जब हबीब तनवीर (1923- 2009) का निधन हुआ तो सभी नाट्य प्रेमियों के मन में ये प्रश्न था कि अब उनके उन नाटकों का क्या होगा जिनको उन्होंने निर्देशित किया था। `आगरा बाज़ार’, `चरणदास चोर’, `हिरमा की अमर कहानी’ जैसे नाटकों की आगामी प्रस्तुतियों के भविष्य को लेकर नाट्य प्रेमियों के मानस पटल पर सवाल छाए हुए थे। वैसे भी हिंदी में नाट्य प्रस्तुतियों की उम्र कम होती है। अमूमन दस, बीस, पचास शो हो जाएँ तो हिंदी में बहुत बड़ी चीज मानी जाती है। सौ हो जाएँ तो क्या कहना! और जब निर्देशक नहीं रहता, उसका निधन हो जाता है तो उसके द्वारा निर्देशित नाटक लगभग बंद हो जाते हैं। इसलिए ये संदेह स्वाभाविक था कि अब हबीब साहब के नाटकों और उनकी रंगमंडली `नया थिएटर’ का क्या होगा?