मोहन राकेश (1925- 1972) का `आधे अधूरे’  एक ऐसा नाटक है जो आधुनिक हिंदी रंगमंच को एक नए भावबोध से भरनेवाला रहा है। वैसे तो राकेश के अन्य दो नाटक- `लहरों के राजहंस’ और `आषाढ़ का एक दिन’ भी आधुनिक भारतीय और हिंदी रंगमंच की उपलब्धियाँ हैं। पर `आधे अधूरे’ इन दोनों से इसलिए अलग और विशिष्ट है कि इसमें आधुनिक व समकालीन जीवन की ध्वनियाँ और अनुगूंजें हैं।