loader

भारंगम 2025: छात्रों की प्रस्तुतियों ने मन मोहा

कई तरह के अवरोधों के बावजूद कुछ विश्वविद्यालयों में नाट्य और रंगमंच विभाग खुलने के सकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। कुछ साल पहले तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और भारतेंदु नाट्य अकादमी ही ऐसे संस्थान थे। फिर मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय आया। कुछ विश्वविद्यालयों में भी नाट्य अध्ययन और प्रशिक्षण के विभाग खुल गए हैं। हालाँकि, इनमें कुछ बेहद विकलांग स्थिति में हैं क्योंकि उनको नाटक करने के लिए अपेक्षित बजट नहीं मिलता। पर कुछ अच्छा भी कर रहे हैं और इसके प्रमाण 2025 के भारंगम (भारत रंग महोत्सव) में भी देखने को मिल रहे हैं। इस कड़ी में हैदराबाद विश्वविद्यालय की नाट्य प्रस्तुति `अंकल वान्या’ की चर्चा हो चुकी है। इस बार दो अन्य नाटकों की चर्चा होगी। पहला है गुजरात विश्वविद्यालय के उपासना स्कूल ऑफ़ परफॉर्मेंस आर्ट की छात्र प्रस्तुति `सूर्य की अंतिम किरण  से सूर्य की पहली किरण तक’। इसे सत्येंद्र परमार ने निर्देशित किया। ये सुरेंद्र वर्मा का लिखा नाटक है और इसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का रंगमंडल कई साल पहले राम गोपाल बजाज के निर्देशन में खेल चुका है।

पर रंगमंडल की पुरानी प्रस्तुति से उपासना स्कूल की इस छात्र प्रस्तुति की तुलना नहीं होनी चाहिए। इसके बाद ये भी कहना पड़ेगा कि ये स्तरीय प्रस्तुति थी। ये आसान नाटक नहीं है। इसमें कई तरह की जटिलताएँ हैं। इसकी कहानी दसवीं सदी की है। कहानी राजा ओकाक की है। 

ताज़ा ख़बरें

राज दरबार के प्रमुख लोग- अमात्य, मुख्य बलाधिकृत, राज पुरोहित चाहते हैं कि राजा ओकाक इसकी अनुमति दें कि उनकी रानी शीलवती नियोग के माध्यम से, जो परंपरा में होता रहा है, किसी संतान को जन्म दें। राजा इसके लिए जल्द तैयार नहीं होता। पर उसके दरबार के प्रमुख लोग कहते हैं `राजा का भी राजा होता है और वो धर्म होता है, इसलिए राजधर्म का पालन करते हुए राजा ओकाक को इसकी स्वीकृति देनी होगी। आख़िरकार राजा को हाँ कहना पड़ता है और रानी शीलवती अपनी पसंद के मुताबिक़ अपने पुराने प्रेमी के साथ एक रात बिताती है। पर मामला यहीं खत्म नहीं होता। रानी अब चाहती है कि उसे आगे भी ऐसा करने की अनुमिति दी जाए क्योंकि शादी के बाद उसने अब तक ब्रह्मचारिणी जैसा जीवन बिताया है और उसका नारी शरीर किसी पुरुष को पाना चाहता है। यहीं से रानी और राजा के बीच ही नहीं, बल्कि रानी और राज दरबार के प्रमुख लोगों के बीच टकराहट शुरू हो जाती है। 

ये नाटक और ये प्रस्तुति दो मुद्दों का वैचारिक अन्वेषण करती है। एक तो ये राजा भी सर्वोपरि नहीं है और उसे भी राजधर्म निभाना पड़ता है। आज की भाषा में कहें तो जो `एस्टेब्लिशमेंट’ होता है वो कुछ मामलों में राज प्रमुख पर भारी पड़ता है। आज के राज प्रमुख, चाहे वो प्रधानमंत्री हों या राष्ट्रपति हों, वे `एस्टेब्लिशमेंट’ की मंशा को नजरअंदाज नहीं कर सकते। 

इस `एस्टेब्लिशमेंट’ में सेना भी होती है, नौकरशाह भी होते हैं, बड़े व्यापारी भी होते हैं। राजा ओकाक न चाहते हुए भी अपने वक़्त के `एस्टेब्लिशमेंट’ के आगे झुकता है। इस नाटक में वैचारिकता का दूसरा मसला स्त्री की चाहत का है। स्त्री के अधिकार की बात तो कही जाती है, मानी भी जाती है, पर अधिकार कहां तक? क्या स्त्री की चाहत को स्वीकार किया जाएगा। रानी शीलवती जब ये मांग करती है उसे अपने पुराने प्रेमी के साथ दो और रातें बिताने की अनुमति दी जाए तो राजा भी विरोध करता है, राजपुरोहित भी, अमात्य भी और महाबलाधिकृत (सेनापति) भी।
bharangam 2025 student performances - Satya Hindi

इन दोनों टकराहटों को दक्षता के साथ पिरोया गया है। बस एक बात खटकती है। वो ये कि रानी शीलवती जब नियोग की पहली रात के बाद लौटती है और फिर से कुछ रातें अपने पुराने प्रेमी के साथ बिताना चाहती है तो उस समय उसके संवाद और उसकी शारीरिक भाषा काफी बेधड़क हो जाती है। शीलवती के चरित्र में, वाणी में, हावभाव में आया ये बदलाव अतिरंजित लगता है और मनोविज्ञान के विपरीत भी। बाकी नाटक की मंजसज्जा आकर्षक है, वेशभूषा भी अच्छी है, अभिनय भी उत्कृष्ट है। गुजराती प्रस्तुति होते हुए हिंदी उच्चारण में कोई दोष नहीं है।

जिस दूसरे नाटक की बात यहां की जा रही है वो है `कंजूस’। ये फ्रांसीसी नाटककार मोलियर का प्रसिद्ध नाटक है और हिंदी में भी कई दशकों से हो रहा है। भारंगम में ये नाटक पुणे की एमआटी- एडीटी विश्वविद्यालय के नाटक विभाग ने किया। निर्देशक थे अमोल श्रीराम देशमुख। इस विश्वविद्यालय की ये एक बड़ी खूबी ये है कि यहाँ रंगमंच की पढ़ाई स्नातक स्तर पर होती है जबकि दूसरे कई विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर स्तर से। ये रंगमंच के विकास के लिए बेहतर संकल्पना है क्योंकि कम उम्र के छात्रों में ग्रहणशीलता ज्यादा होती है। यहां की दूसरी खूबी है कि यहां देश भर के विद्यार्थी आते हैं- मणिपुर से भी, बिहार के भी, दिल्ली से भी। इसका लाभ ये होता है कि एक अखिल भारतीय रंगदृष्टि विकसित होती है जिसकी आज की तारीख़ में बहुत ज़रूरत है।

विविध से और ख़बरें
bharangam 2025 student performances - Satya Hindi

जहाँ तक खेले गए नाटक `कंजूस’ की बात है ये हास्य से भरपूर है। इसमें एक ऐसा व्यक्ति केंद्र में जो काफी पैसेवाला है पर महाकंजूस है और एक युवा लड़की से शादी करना चाहता है। उस लड़की से उसका बेटा भी प्यार करता है लेकिन कंजूस को अपने बेटे की भावनाओं की कोई कद्र नहीं। उसकी बेटी भी किसी नौजवान से प्यार करती है लेकिन वो चाहता बेटी को ज़्यादा उम्र के ऐसे आदमी से ब्याह दे जो उसे काफी पैसा दे। इस तरह की पारिवारिक स्थिति में कई तरह के झमेले हैं।

एक अच्छे हास्य नाटक की सफलता प्रधानत: दो बातों पर निर्भर करती है। पहली ये कि निर्देशक ने दृश्यों के किस तरह निर्मित किया है और दूसरे अभिनेताओं में सही टाइमिंग है या नहीं। दोनों ही लिहाज से ये अच्छा नाटक है। इसमें भरपूर मनोरंजन है पर साथ ही एक प्रखर सामाजिक दृष्टि भी है। अगर स्नातक स्तर के छात्र (और छात्राएं भी) इस तरह की योग्यता और क्षमता विकसित कर लेते हैं तो ये बताता है कि इनका प्रशिक्षण सही दिशा में हो रहा है।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
रवीन्द्र त्रिपाठी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विविध से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें