कई तरह के अवरोधों के बावजूद कुछ विश्वविद्यालयों में नाट्य और रंगमंच विभाग खुलने के सकारात्मक प्रभाव पड़ रहे हैं। कुछ साल पहले तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और भारतेंदु नाट्य अकादमी ही ऐसे संस्थान थे। फिर मध्य प्रदेश नाट्य विद्यालय आया। कुछ विश्वविद्यालयों में भी नाट्य अध्ययन और प्रशिक्षण के विभाग खुल गए हैं। हालाँकि, इनमें कुछ बेहद विकलांग स्थिति में हैं क्योंकि उनको नाटक करने के लिए अपेक्षित बजट नहीं मिलता। पर कुछ अच्छा भी कर रहे हैं और इसके प्रमाण 2025 के भारंगम (भारत रंग महोत्सव) में भी देखने को मिल रहे हैं। इस कड़ी में हैदराबाद विश्वविद्यालय की नाट्य प्रस्तुति `अंकल वान्या’ की चर्चा हो चुकी है। इस बार दो अन्य नाटकों की चर्चा होगी। पहला है गुजरात विश्वविद्यालय के उपासना स्कूल ऑफ़ परफॉर्मेंस आर्ट की छात्र प्रस्तुति `सूर्य की अंतिम किरण  से सूर्य की पहली किरण तक’। इसे सत्येंद्र परमार ने निर्देशित किया। ये सुरेंद्र वर्मा का लिखा नाटक है और इसे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का रंगमंडल कई साल पहले राम गोपाल बजाज के निर्देशन में खेल चुका है।