भारतीय वांगमय में महाभारत एक ऐसा ग्रंथ है जो युगों-युगों से और इतिहास के हर दौर में रचनाकारों के लिए अपने समय के मुताबिक़ नया रचने हेतु बनता रहा है। भास और कालिदास जैसे संस्कृत नाटककार ही नहीं, धर्मवीर भारती जैसे आधुनिक दौर के नाटककार भी अपनी युगीन चिंताओं को इसकी कहानियों या प्रसंगों के माध्यम से अपनी बात कहते रहे हैं। ऐसा संस्कृत और हिंदी में ही नहीं, बल्कि अन्य भाषाओं में भी होता रहा है। ताज़ा प्रकरण है नाटक `भूमि’ जो इस बार के भारंगम (भारत रंग महोत्सव) में खेला गया। इसे लिखा है आशीष पाठक ने और निर्देशित किया स्वाति दूबे ने। ये नाटक महाभारत के वन पर्व के चित्रांगदा वाले प्रसंग से प्रेरित है।
भारंगम 2025: महाभारत की भूमि!
- विविध
- |
- |
- 6 Feb, 2025

भारंगम 2025 में भूमि नाटक का शानदार मंचन हुआ। जानें इस नाटक की विशेषताएं और सांस्कृतिक महत्व। पढ़िए, नाटक की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से…
अर्जुन ने मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से विवाह किया था और उससे उसे एक पुत्र ब्रभुवाहन भी हुआ था। पर ये नाटक सिर्फ इस प्रसंग की कथा भर नहीं है। नाटककार ने इसे भूमि यानी जमीन को पाने की ललक से जोड़ दिया है। यही इसकी मौलिकता है। हर राजा चाहता है कि उसकी भूमि का विस्तार हो। पर किस क़ीमत पर? ये एक युद्ध विरोधी नाटक है हालाँकि इसमें युद्ध भी है।