ये तो अक्सर पढ़ने और सुनने में आता है कि फलां नाटक या उपन्यास में समाज के सबसे नीचे के तबक़े के दुख-दर्द हैं। पर सबसे नीचे का तबक़ा कौन है- इस पर सर्वस्वीकृति नहीं है। बेशक इसमें ग़रीब लोग होते हैं। लेकिन ग़रीबी भी कई तरह की होती है। कुछ लोगों के जीवन में आर्थिक अभाव विकराल होते हैं। पर कुछ ऐसे भी होते हैं जिनकी ज़िंदगी की भयावहता का अंदाज़ा तब लगता है जब आप उनको क़रीब से जाकर देखते-समझते हैं और पाते हैं कि यहां सिर्फ़ ग़रीबी नहीं है, बल्कि आर्थिक से इतर संकट भी है। फिर आप उस घुटन का अंदाज़ा लगा पाते हैं जिसे सुनने के लिए कान को दिल के पास जाना पड़ता है।