देश के कई अन्य राज्यों की तरह ओडिशा में नाटक और रंगमंच की बहुत पुरानी परंपरा है। इतना समृद्ध कि भारतीय रंगमंच ने विश्व स्तर पर यदि रंगमंच का निर्यात किया है तो उसमें बड़ी भूमिका ओडिशा की है। चूंकि ओडिशा के कई जिलों में पहले तेलगु राजा भी हुआ करते थे इसलिए तेलगु रंगमंच वाले भी निर्यात पर दावा कर सकते हैं। मैं बात कर रहा हूं छाया - पुतली (जिसे अंग्रेजी में शायडो पपेट कहते हैं) नाटकों की।
समृद्ध परंपरा वाले ओडिशा में आधुनिक रंगमंच का हाल क्या?
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- 27 Nov, 2024

आज इंडोनेशिया में जिस छाया- पुतली नाटकों की काफी लोकप्रियता है वो ओडिशा से ही गया है। तो आज़ादी के बाद देश के कुछ हिस्सों में जो आधुनिक रंग-आंदोलन शुरू हुआ वो ओडिशा को उस तरह प्रभावित क्यों नहीं कर सका?
आज इंडोनेशिया में जिस छाया- पुतली नाटकों की काफी लोकप्रियता है वो ओडिशा से ही गया है। दो सहस्राब्दियां पहले ओडिशा से कई व्यापारी नाव से समुद्र यात्रा करते हुए बाली-जावा- सुमात्रा आदि देशों और जगहों में व्यापार के लिए जाते थे और जैसा कि अन्य देशों और जगहों पर भी होता रहा है, व्यापारी जब अपने घर से दूर देश में जाते हैं तो साथ में अपनी कुछ परंपरा भी लेकर जाते हैं। छाया - पुतली इसी तरह इंडोनेशिया पहुंचा।