`हैमलेट’ शेक्सपीयर का एक ऐसा नाटक है जो पिछले सवा चार सौ बरसों से (ये माना जाता है कि ये सन् 1600 से 1601 के बीच लिखा गया) दुनिया भर के नाट्य प्रेमियों के दिल में बसा हुआ है। अमूमन हर रंगमंच निर्देशक मन में ये इच्छा रखता है कि कम से कम एक बार इसे निर्देशित कर दे और हर महत्त्वाकांक्षी अभिनेता ये ख्वाब पालता है कि जीवन में कम से कम एक मर्तबा हैमलेट का किरदार निभा ले। बहुत कम की ये हसरतें पूरी हो पाती हैं।
सबसे बड़ा विष तो बदला है!
- विविध
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- रवीन्द्र त्रिपाठी
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- 30 Dec, 2024


रवीन्द्र त्रिपाठी
युवा रंगकर्मी दिव्यांशु कुमार ने दिल्ली की `क्षितिज’ रंगमंडली के लिए पिछले दिनों श्रीराम सेंटर में `हैमलेट’ नाटक को रूपांतरित करके `दार्जिलिंग वेनम’ नाम से मंचन किया। पढ़िए, रवींद्र त्रिपाठी की समीक्षा।
ये नाटक प्रतिशोध, प्रेम, परिवार और पति-पत्नी के बीच जटिल संबंध, कृतघ्नता, विश्वासघात, मानसिक उद्वेलन जैसे कई मनोभावों को समेटे हुए है। दुनिया भर के नाट्य निर्देशक इसे अपने तरीके से समझने और दिखाने की कोशिश करते रहे हैं और ये सिलसिला भारत में भी चलता रहा है। कुछ भारतीय नाट्य निर्देशकों ने अलग-अलग भाषाओं में मूल नाटक किया है तो कुछ ने इसे रूपांतरित करके खेला है। इस सूची में ताजा नाम है युवा रंगकर्मी दिव्यांशु कुमार का, जिन्होंने दिल्ली की `क्षितिज’ रंगमंडली के लिए पिछले दिनों श्रीराम सेंटर में इस नाटक को रूपांतरित करके `दार्जिलिंग वेनम’ नाम से किया।
- Ravindra Tripathi
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