कहानियों को आधार बनाकर नाटक होते रहते हैं। ये कोई नई बात नहीं है। हिंदी रंगमंच पर ये कम से कम पिछले साठ -सत्तर बरसों से हो रहा है। पर अक्सर होता ये है कि अलग-अलग कहानियों की प्रस्तुतियां होती हैं। यानी दर्शक के सामने कहानी भर होती है। पर दो या उससे अधिक कहानियों को एक साथ मिलाकर एक नाटक करने के प्रयास बहुत कम होते हैं। अगर ऐसा हो तो हम सिर्फ एक या दो या तीन कहानियां भर नहीं देखते। हमारे सामने एक नया नाटय- रस आ जाता है। राजेश तिवारी इसी तरह के अपवाद- स्वरूप निर्देशक की तरह हैं। पिछले शनिवार दिल्ली के श्रीराम सेंटर में उनके निर्देशन में हुआ `नन्ही जान के दो हाथ’ एक ऐसा प्रयोग था जिसमें दो कहानियों को इस तरह मिलाया गया कि वे अलग-अलग लगी ही नहीं। यहां इस्मत चुगतई की दो कहानियों - `नन्हीं सी जान’ और `दो हाथ’ एकरूप हो गईं। इसमें जो नाट्य-रस निर्मित हुआ वो कहानी-रस से अतिरिक्त था।
इस्मत चुगतई की दो कहानियों का एक नाट्य-रस!
- विविध
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- 29 Mar, 2025

निर्देशक राजेश तिवारी के निर्देशन में पिछले शनिवार दिल्ली के श्रीराम सेंटर में `नन्ही जान के दो हाथ’ एक ऐसा प्रयोग था जिसमें दो कहानियों को इस तरह मिलाया गया कि वे अलग-अलग लगी ही नहीं। पढ़िए रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
पर बात इतनी भर नहीं है। राजेश, जिन्होंने खुद इस नाट्यरूप को लिखा, ये ध्यान रखा कि इसमें इस्मत चुगतई की रचनाओं का मूल मंतव्य न सिर्फ बना रहे बल्कि उसे विस्तारित भी किया। कहानियों की बात काफी दूर तलक चली गई। ये कैसे हुआ, इसे समझने के लिए पहले इन कहानियों पर बात कर ली जाए। `नन्ही सी जान’ एक ऐसी कहानी है जो मजाकिया रहस्य कथा की तरह है जिसमें एक लड़की पर ये आरोप लगता है कि उसने एक नन्ही जान को मार दिया। पर ये नन्ही जान कौन है? क्या वो मानव- जान है, क्या किसी बच्चे या बच्ची की जान है?