कहानियों को आधार बनाकर नाटक होते रहते हैं। ये कोई नई बात नहीं है। हिंदी रंगमंच पर ये कम से कम पिछले साठ -सत्तर बरसों से हो रहा है। पर अक्सर होता ये है कि अलग-अलग कहानियों की प्रस्तुतियां होती हैं। यानी दर्शक के सामने कहानी भर होती है। पर दो या उससे अधिक कहानियों को एक साथ मिलाकर एक नाटक करने के प्रयास बहुत कम होते हैं। अगर ऐसा हो तो हम सिर्फ एक या दो या तीन कहानियां भर नहीं देखते। हमारे सामने एक नया नाटय- रस आ जाता है। राजेश तिवारी इसी तरह के अपवाद- स्वरूप निर्देशक की तरह हैं। पिछले शनिवार दिल्ली के श्रीराम सेंटर में उनके निर्देशन में हुआ `नन्ही जान के दो हाथ’ एक ऐसा प्रयोग था जिसमें दो कहानियों को इस तरह मिलाया गया कि वे अलग-अलग लगी ही नहीं। यहां इस्मत चुगतई की दो कहानियों - `नन्हीं सी जान’ और `दो हाथ’ एकरूप हो गईं। इसमें जो नाट्य-रस निर्मित हुआ वो कहानी-रस से अतिरिक्त था।