कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जो बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे की जिस रणनीति पर चल रही है, क्या वह दूसरे राज्यों के चुनावों में भी चलेगी? या फिर पार्टी की रणनीति बदलेगी?
पंजाब के अजनाला में पिछले दिनों घटी घटना मामूली नहीं है। जिस तरह से खालिस्तान की मांग फिर से उठी है, वो हिन्दू राष्ट्र की मांग का संदर्भ याद दिलाता है। क्या मजहबी कट्टरता की अंतिम मंजिल किसी राष्ट्र की मांग होती है।
इस साल कई राज्यों में चुनाव है और उन्हें 2024 की रिहर्सल माना जा रहा है। लेकिन तमाम राज्यों में बीजेपी तमाम तरह के संकटों से जूझ रही है। पार्टी पर पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की पकड़ ढीली पड़ने की बातें कही जा रही हैं।
उत्तर भारत में भाजपा की आक्रामक रणनीति से तमाम राजनीतिक दल सहमे रहते हैं और वे अक्सर भाजपा की पिच पर भी खेलने लगते हैं लेकिन उसके बरक्स दक्षिण भारत में भाजपाई राजनीति की दल नहीं गलती। तमिलनाडु उसका ताजा उदाहरण है। क्या है इसकी वजहः
जोशीमठ एक इशारा है कि प्रकृति किस तरह बदला लेती है। लेकिन इसका सीधा संबंध हिमालय से है। हिमालय को अगर बचाने की मुहिम शुरू हुई तो भारत का बहुत कुछ बच जाएगा, अन्यथा हमें जलवायु परिवर्तन के बुरे दौर का सामना करना पड़ेगा।
गुजरात में बीजेपी को क्या उन बड़े नेताओं की ओर से है भितरघात की आशंका है जिन्हें इस बार उम्मीदवार नहीं बनाया है या पहले भी जिन्हें चुनाव लड़ने से रोका गया था?
छह साल में नोटबंदी से कोई फायदा भी हुआ? यदि ऐसा हुआ तो सरकार ने उन फायदों को गिनाती क्यों नहीं? क्यों नहीं प्रधानमंत्री मोदी नोटबंदी का ज़िक्र भी करते हैं?
क्या यातायात नियमों के उल्लंघन की छूट दी जा सकती है? गुजरात के गृह राज्यमंत्री हर्ष संघवी ने ऐलान किया था कि एक हफ़्ते के लिए यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालों के चालान नहीं काटे जाएंगे।
आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने देश को नंबर 1 बनाने के लिए एक यात्रा की शुरूआत की थी। इसकी घोषणा ठीक भारत जोड़ो यात्रा के समय की गई थी। मकसद साफ था। केजरीवाल की यात्रा का अब अतापता नहीं है। मीडिया सवाल भी नहीं पूछ रहा है। अनिल जैन का यह लेख केजरीवाल की यात्रा पर सवाल उठाता हुआः
समाजवादी नेता रहे मुलायम सिंह का आज निधन हो गया। उनको सामाजिक न्याय के संघर्ष से जोड़कर देखा जाता रहा है। तो आख़िर नेताजी को कैसे याद किया जाएगा? जानिए, उनकी राजनीति कैसी रही है।
कभी राष्ट्रपिता गांधी ने देश के माहौल से तंग आकर लंबे समय तक जीने की तमन्ना छोड़ दी थी। अब तो खैर हमारे प्रधानमंत्री को इस दौर का राष्ट्रपिता कहा जा रहा है। बेशक वो किसी का जुमला है लेकिन हम खुद से सवाल करें कि अगर महात्मा गांधी इस समय जिन्दा होते तो अब क्या कहते या क्या करते।
आज हिंदी दिवस है। इस खास मौके पर यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि हिंदी की मौजूदा स्थिति कैसी है? यह दलील क्यों दी जाती है कि अंग्रेजी के प्रति नफरत का वातावरण बनाया गया तो यह देश टूट जाएगा?
राज्यों में विधानसभा चुनावों में बीजेपी अपने क्षेत्रीय नेताओं को चेहरा क्यों नहीं बना रही है? क्या अगले चुनावों में वह ऐसा करेगी या फिर प्रधानमंत्री मोदी ही चेहरा होंगे? जानिए इसके पीछे की वजह।