हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
जीत
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
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पूर्णिमा दास
बीजेपी - जमशेदपुर पूर्व
जीत
बीजेपी में सतही तौर पर देखा जाए तो नेतृत्व को लेकर कहीं कोई गड़बड़ नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निर्विवाद रूप से पार्टी के सर्वोच्च नेता हैं ही और उनके बाद नंबर दो की पोजिशन पर भी गृह मंत्री अमित शाह के सामने कोई चुनौती नहीं है। लेकिन उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद कुछ वाकये ऐसे हुए हैं जो बताते हैं कि बीजेपी में अब शीर्ष स्तर सब कुछ ठीक नहीं है और 'मोदी के बाद कौन’ को लेकर सत्ता-संघर्ष शुरू हो चुका है।
बीजेपी में नंबर दो की पोजिशन को लेकर चर्चा तो उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान ही शुरू हो गई थी। चुनाव से पहले चर्चा थी अमित शाह उत्तर प्रदेश में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं। यह चर्चा निराधार भी नहीं थी, क्योंकि 2014 के बाद उत्तर प्रदेश में यह पहला ऐसा चुनाव था जिसमें अमित शाह ने बहुत कम रैलियां की। बीजेपी ने यह पूरा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधे पर सवार होकर ही लड़ा।
उत्तर प्रदेश से शाह के अलगाव की वजह यह मानी जा रही थी कि योगी का तेजी से उभरना वे अपनी नंबर दो की पोजिशन के लिए निरापद नहीं मानते हैं।
उत्तर प्रदेश के चुनाव के बाद शाह का कद बढ़ने और योगी के संसदीय बोर्ड का सदस्य न होने की चर्चा को उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी हाल ही में अपनी गुजरात यात्रा के दौरान अपने एक बयान के माध्यम से फालतू करार दे दिया है। राज्यपाल के रूप में आनंदी बेन का राजनीतिक बयानबाजी करना क्या उचित है, यह सवाल अब बेमतलब है, क्योंकि पिछले आठ वर्षों के दौरान राज्यपाल और सत्तारूढ़ पार्टी के नेता का अंतर अब पूरी तरह खत्म हो गया है।
पिछले आठ वर्षों के दौरान शायद ही कोई ऐसा राज्यपाल रहा हो जो जिसने सक्रिय राजनीति से अपने को अलग रखा हो। गैर बीजेपी शासित राज्यों के राज्यपाल जहां अपनी ही राज्य सरकार के खिलाफ विपक्ष के नेता की भूमिका में काम करते हैं, वहीं बीजेपी शासित राज्यों के राज्यपाल पार्टी और सरकार के प्रचारक के रूप में काम करते हुए दिखते हैं।
कुछ राज्यपालों ने तो चुनावों में बीजेपी का प्रचार करने में भी संकोच नहीं किया है। आनंदी बेन भी अपवाद नहीं हैं। वे मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की राज्यपाल रहते हुए भी पार्टी के प्रचारक की भूमिका निभाती रही हैं और अब उत्तर प्रदेश की राज्यपाल के रूप में भी यही कर रही हैं।
बहरहाल आनंदी बेन पटेल ने उत्तर प्रदेश में दोबारा बीजेपी की सरकार बनने के बाद अपने गृह राज्य गुजरात की यात्रा के दौरान सूरत में एक निजी मेडिकल कॉलेज के भूमिपूजन कार्यक्रम में राजनीतिक भाषण देते हुए उत्तर प्रदेश के चुनाव के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जोडी का जिक्र किया। उन्होंने कहा, ''मोदी और योगी की जोड़ी का कोई तोड़ नहीं है। इस जोड़ी को कोई नहीं तोड़ सकता, कोई नहीं।’’
आनंदी बेन यहीं नहीं रूकीं। उन्होंने वहां मौजूद बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा, ''इस चुनाव में आप सबका बहुत सहयोग रहा। आप में से कई लोग चुनाव प्रचार के लिए उत्तर प्रदेश आए थे, जिससे एक सुंदर वातावरण बन गया था। उत्तर प्रदेश में पिछले 35-40 साल के दौरान ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि कोई मुख्यमंत्री दूसरी बार चुन कर आया हो। इसके लिए आप मुझे भी बधाई दीजिए और मेरा अभिनंदन कीजिए।’’
यह कहना गैर जरूरी है कि आनंदी बेन ने विशुद्ध राजनीतिक बयान दिया है, जिससे बीजेपी के अंदर का सत्ता-संघर्ष उजागर होता है। गुजरात की राजनीति जानने वाले जानते हैं कि आनंदी बेन और अमित शाह दोनों ही मोदी के बेहद विश्वासपात्र हैं लेकिन दोनों का आपसी रिश्ता छत्तीस जैसा है।
मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आनंदी बेन का गुजरात का मुख्यमंत्री बनने और हटने, फिर उनकी जगह अमित शाह के करीबी विजय रूपानी के मुख्यमंत्री बनने और फिर उनको हटाए जाने के बाद आनंदी बेन की करीबी भूपेंद्र पटेल के मुख्यमंत्री बनने की राजनीति शाह और आनंदी बेन के राजनीतिक अहम के टकराव की कहानी है।इसलिए आज आनंदी बेन अगर मोदी-योगी की जोड़ी के अटूट होने की बात कर रही हैं तो यह बीजेपी में नंबर दो की पोजिशन के लिए सत्ता-संघर्ष शुरू होने का स्पष्ट संकेत हैं।
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