पंजाब में अमृतसर जिले के अजनाला कस्बे में पिछले दिनों हथियारों से लैस हजारों लोगों का पुलिस थाने पर कब्जा कर लेना कोई अपवाद घटना नहीं है, बल्कि पिछले कुछ सालों के दौरान पंजाब में घटी कुछ बड़ी घटनाओं से बने हालात का प्रकटीकरण है। इस घटना में जो सबसे खास और चिंताजनक बात है पंजाब में खालिस्तान की मांग और उसका समर्थन करने वाले लोग। इससे पहले जो भी घटनाएं हुईं, वे सब छिटपुट और उकसाने वाली थीं, लेकिन अजनाला की घटना पंजाब के भविष्य को लेकर डराने वाली है। इसके पीछे का कारण जो किरदार है, वह बहुत तेज गति से बढ़ता 29 साल का नौजवान है- अमृतपाल सिंह खालसा।
इंजीनियरिंग की पृष्ठभूमि वाला अमृतपाल सिंह कुछ समय पहले तक दुबई में रहते हुए अपने परिवार का ट्रांसपोर्ट का कारोबार संभाल रहा था। वहां वह बिल्कुल एक आधुनिक कारोबारी युवक की तरह रहता था। आम सिक्खों की तरह धार्मिक रिवाज के मुताबिक न तो उसने अपने केश बढ़ाए थे और न ही वह दाढ़ी रखता था। तीन नए विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ हुए ऐतिहासिक किसान आंदोलन के दौरान वह पंजाब के किसानों को समर्थन देने के लिए भारत आया था। फिर अचानक उसे नशे के जाल में पंजाब के फंसे होने का अहसास हुआ और वह धर्म को रास्ता बनाकर राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय हो गया है। यह रास्ता जरनैल सिंह भिंडरांवाले का रास्ता है जिसने पंजाब में खालिस्तान की मांग को लेकर पंजाब में अलगाववाद को खूब हवा दी, जिससे कई चरमपंथी संगठनों का उदय हुआ और पंजाब लंबे समय तक हिंसा की आग में झुलसता रहा।
अमृतपाल सिंह ने नशे के खिलाफ आवाज उठाते हुए और खालिस्तान की मांग करते हुए खुद को जनरैल सिंह भिंडरांवाले का समर्थक भी घोषित किया है। इससे उसके इरादों को आसानी से समझा जा सकता है। पिछले 4-5 महीनों से वह कुछ ज्यादा ही सक्रिय है। वह हथियार लहराते अपने समर्थकों के साथ नशा मुक्ति पुनर्वास केंद्रों के दौरे कर रहा है। पंजाब के गांवों में उसकी पकड़ बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया में भी वह जबरदस्त ढंग से छाया हुआ है। अपने फायदे के लिए उन्हीं मुद्दों को सामने रख रहा है जिनसे पंजाब पिछले कई सालों से जूझ रहा है। इसमे अलग देश यानी खालिस्तान (खालसा राज) की मांग, पंजाब में नशे की लत और राज्य से होने वाला पलायन। इस सबके पीछे वह मुख्य वजह दिल्ली द्वारा किए जा रहे 'अन्याय और अत्याचार’ को बताता है। खालिस्तान की मांग करते हुए वह महाराजा रणजीत सिंह के समय का उल्लेख भी करता है, जब हिमाचल, हरियाणा और कश्मीर भी पंजाब के ही हिस्से हुआ करते थे।
बहरहाल पंजाब के बुरे दौर की शुरुआत भिडरांवाले के उदय से मानने वाले लोग यह मान सकते हैं कि पंजाब में अभी अस्सी के दशक जैसा कुछ नहीं हो रहा है। मगर ऐसा समझने वालों को यह याद रखना चाहिए कि पंजाब पर अलगाववाद के बुरे दौर का साया सत्तर या अस्सी के दशक में नहीं पड़ा था। उसकी बुनियाद तो साठ के दशक में ही पड़ गई थी, जब पंजाब के बेहद ताकतवर नेता प्रताप सिंह कैरो की हत्या हुई थी। तब भाषायी आधार पर पंजाब का विभाजन भी नहीं हुआ था। भाषा के आधार पर अलग सूबे की मांग हो रही थी और उसी दौरान 1965 में प्रताप सिंह कैरो की हत्या हो गई थी। उसके बाद सूबे का बंटवारा हुआ और थोड़े समय तक शांति रही लेकिन कुछ ऐतिहासिक कारणों और कुछ राजनीतिक गलतियों की वजह से सत्तर के दशक में सिक्खों के चरमपंथी संगठनों का उदय हुआ। उसके बाद की कहानी इतिहास है, जिसका एक अध्याय ब्लू स्टार ऑपरेशन और उसके बाद देश की प्रधानमंत्री की हत्या के साथ समाप्त हुआ था।
ऐसा लग रहा है कि तीन दशक की घटनाओं और राजनीतिक गलतियों से सबक लेने की बजाय उन्हें दोहराया जा रहा है। पिछले कुछ समय से घट रही घटनाएं बता रही हैं कि पंजाब में राजनीतिक और सामाजिक विमर्श तेजी से धर्म की तरफ मुड़ता जा रहा है। सूबे के कई हिस्सों में गुरुग्रंथ साहेब की बेअदबी के मामले सामने आए हैं। स्वर्ण मंदिर में भी ऐसी घटना हुई और कई जगह बेहद हिंसक प्रतिक्रिया देखने को मिली है। गांवों में नौजवान भिंडरांवाले के नाम की शपथ लेने लगे हैं। अगर सरकारें इतिहास की गलतियों के प्रति लापरवाह नहीं रहतीं तो इस तरह की घटनाओं पर सख्त रुख अख्तियार किया जाता और इसके पीछे की साजिश को समझने व उससे निबटने का प्रयास किया जाता। लेकिन सरकारों ने इसे कानून व्यवस्था की समस्या के तौर पर लिया और उसी अंदाज में निबटने का प्रयास किया। इसी की नतीजा अजनाला की घटना के रूप में सामने आया।
अजनाला की घटना, 'वारिस पंजाब दे’ नामक संगठन का उदय और अमृतपाल सिंह का तेजी से उभरना बताता है कि पंजाब अंदर ही अंदर कई तरह से खदबदा रहा है। सबसे बड़ा संकट राजनीतिक है। राजनीतिक संकट का मतलब यह नहीं है कि सूबे में आम आदमी पार्टी की सरकार है या मुख्यमंत्री कमजोर और अनुभवहीन है। इसका मतलब है कि देश का राजनीतिक विमर्श पंजाब को प्रभावित कर रहा है।
अमृतपाल सिंह खुल कर कह रहा है कि जब हिंदू राष्ट्र की बात हो रही है तो खालिस्तान की बात करना अपराध कैसे हो सकता है। हिंदू राष्ट्रवाद की धारणा के उदय और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा और आरएसएस द्वारा उसके मुखर प्रचार ने परोक्ष रूप से पंजाब में सिक्ख राष्ट्रवाद के विचार को हवा दी है। पंजाब के छोटे-छोटे शहरों-कस्बों से लेकर दुनिया के कई देशों में हिंदू बनाम सिक्ख राष्ट्रवाद का उन्माद जोर पकड़ रहा है। कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के कई शहरों में सिक्खों और हिंदुओं के बीच हिंसक टकराव की घटनाएं हुई हैं, जिनका असर पंजाब में भी हुआ है।
पंजाब का एक बड़ा संकट आर्थिकी का भी है। पंजाब की जिस धरती से हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ था, वह पिछले कुछ वर्षों से तेजी से बंजर होती जा रही है। भूमिगत जल का स्तर लगातार गिर रहा है। पैदावार कम हो रही है और किसानों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। पंजाब में किसान किस कदर परेशान हैं, इसकी बड़ी झलक केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल तक चले आंदोलन में देखी जा चुकी है। उस दौरान उनके आंदोलन के प्रति सहानुभूति दिखाने की बजाय जिस तरह से उसे बदनाम करने और किसानों को खालिस्तानी बताने का अभियान केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा नेताओं और मीडिया की ओर से चला उसने पंजाब की बड़ी आबादी के दिल-दिमाग पर प्रतिकूल असर डाला है।
अलगाववादी और चरमपंथी संगठन इसका फायदा उठा रहे हैं। वे भाषा और धर्म का मुद्दा उठाने के साथ ही आरोप लगा रहे हैं कि पंजाब से उसकी समद्धि छीन ली गई है। उसकी नदियों का पानी चुरा लिया गया है। उसका गौरव समाप्त हो रहा है। अमृतपाल सिंह जैसे लोग भी इन्हीं बातों से पंजाब के युवाओं को उकसा रहे हैं। देश के दूसरे हिस्सों की तरह पंजाब में बढ़ रही बेरोजगारी भी अमृतपाल के लिए मददगार साबित हो रही है।
फिर एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि पंजाब में किशोरों और युवाओं की बड़ी आबादी नशे की आदी हो गई है। पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की हत्या और उसके बाद हत्या में शामिल दो लोगों का जेल के भीतर मारा जाना पंजाब की एक दूसरी हकीकत बताने वाला है। नशे के बाद पंजाब का दूसरा सबसे बड़ा संकट गैंगवार और गैंगेस्टर्स का है। दर्जनों की संख्या में गैंगेस्टर पाकिस्तान और कनाडा में बैठे हैं और वहां से उनके इशारे पर पंजाब में हत्याएं हो रही हैं। पंजाब में करीब सत्तर गैंग ऐसे हैं, जिनमें हर गैंग के सदस्यों की संख्या पांच सौ से ऊपर है। इसके अलावा कई छोटे गैंग हैं। इनके पास पैसे के दो स्रोत हैं- नशा और हथियार।
पाकिस्तान की सीमा से सटे पंजाब के इलाकों में भारी मात्रा में हथियार और नशीले पदार्थों की सप्लाई हो रही है। सत्तर-अस्सी के दशक में पंजाब में अस्थिरता का फायदा उठा कर दहशतगर्दी फैला चुकी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को पता है कि ऐसी स्थिति में उसे क्या करना है। अब तो उसे प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से चीन की मदद भी हासिल है। वह थोक के भाव ड्रोन के जरिए हथियार और नशीले पदार्थ पंजाब में भेज रहा है। देश से बाहर बब्बर खालसा, खालिस्तान कमांडो फोर्स, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, इंटरनेशनल सिक्ख यूथ फ़ेडरेशन आदि अलगाववादी और चरमपंथी संगठन आईएसआई के संपर्क में रहते हुए भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। इसी तरह सिक्ख फॉर जस्टिस या वर्ल्ड सिक्ख ऑर्गेनाइजेशन जैसी संस्थाएं है, जो कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया आदि देशों से पंजाब के युवाओं के दिमाग को प्रभावित करने का काम कर रही हैं।
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नशे की लत के शिकार और गैंगवार की जाल मे फंसे पंजाब के युवाओं को अपना भला बुरा नहीं दिख रहा है।
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि केंद्र और राज्य की सरकारें पंजाब के गहराते संकट की गंभीरता को नहीं समझ रही हैं। वे किसी न किसी मुगालते में हैं या इसमें अपना राजनीतिक फायदा देख रही हैं, जैसा सत्तर के दशक में कांग्रेस ने देखा था। यह आग से खेलने या शेर की सवारी करने जैसा है।
यह तथ्य ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भिडरांवाले ने अपनी तरफ से कभी अलग देश की मांग नहीं की थी, तब भी खालिस्तान के विचार ने पंजाब की बड़ी आबादी को प्रभावित किया था, जबकि आज अमृतपाल खुल कर खालिस्तान की बात कर रहा है। वह खुल कर देश के गृह मंत्री को धमकी दे रहा है और इंदिरा गांधी के हस्र की याद दिला रहा है। उसकी इन बातों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए। केंद्र और राज्य सरकार को इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि यह कानून व्यवस्था से जुड़ा सामान्य मामला है और जब चाहेंगे तब इसे कुचल देंगे। इस समय जरा सी भी लापरवाही या कोई भी गलत राजनीतिक पहल भयावह अंजाम देने वाली हो सकती है।
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