ये अंदेशा तो पहले से था कि कहीं बीजेपी सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनके साथ दिवंगत हुए दूसरे सैन्य अधिकारियों की शहादत को भुनाने की कोशिश तो नहीं करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनरल रावत की अंत्येष्टि के अगले ही दिन उत्तर प्रदेश में बलरामपुर की चुनावी सभा में इस अंदेशे को सही साबित कर दिया। इस मौक़े पर उन्होंने जनरल रावत की सेवाओं का ज़िक्र करते हुए श्रद्धांजलि दी।
क्या चुनावी राजनीति का हथियार बनाई जा रही है सेना?
- देशकाल
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- 12 Dec, 2021

लोगों की याददाश्त कमज़ोर रहती है इसलिए बताना ज़रूरी है कि 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले 2016 में भी मोदी सरकार ने एक सर्जिकल स्ट्राइक की थी। इसके ज़रिए मोदी ने अपने 56 इंच छाती वाली छवि को मज़बूत करने की कोशिश की थी और उस समय इसमें कामयाब भी रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनरल रावत को श्रद्धांजलि पहले ही दे चुके थे इसलिए चुनाव के उद्देश्य से आयोजित की गई जनसभाओं में ऐसा करने की ज़रूरत नहीं थी, उल्टे इससे बचा जाना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ऐसा किया क्योंकि वह ऐसा लगातार करते आ रहे हैं। उन्होंने कभी सेना को चुनावी राजनीति से अलग रखने की नैतिक एवं लोकतांत्रिक समझदारी नहीं दिखलाई, बल्कि उसका कैसे उपयोग किया जा सकता है वे इसी जुगत में लगे रहे।