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गाँधी को गालियाँ क्यों दे रहे हैं गोडसेवादी?

संघ परिवार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है, बल्कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी बताती है कि इसमें उसकी सहमति है। वास्तव में ये एक तरह की जुगलबंदी है। इसीलिए प्रज्ञा ठाकुर जब गोडसे का महिमामंडन करती हैं तो प्रधानमंत्री दोमुँहा बयान देते हैं। वे कहते हैं कि वे कभी मन से माफ़ नहीं करेंगे,  मगर उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई भी नहीं करते। 
मुकेश कुमार

तथाकथित धर्म संसदों में महात्मा गाँधी को दी गई ग़ालियाँ हिंदुत्व की राजनीति के नए चरण में प्रवेश की एक और उद्घोषणा है। ये उद्घोषणा बताती है कि हिंदुत्व अब और अतिवादी हो रहा है, हिंसक रूप अख़्तियार करने जा रहा है। चाहे मुसलमानों के सफाए की बात हो या फिर गाँधी पर भद्दी टिप्पणियों की बौछार दोनों ही तालिबानी हिंदुत्व के आगमन का शंखनाद है। 

ये शंखनाद है भारतीय राष्ट्रवाद पर निर्णायक हमला करने का। वह भारतीय राष्ट्रवाद जो आज़ादी के आंदोलन के दौरान गढ़ा गया, जिसे गाँधी, नेहरू, पटेल, अंबेडकर, मौलाना आजाद, भगतसिंह के नामों से पहचाना जाता है और जो हिंदू राष्ट्र की राह की एक बढ़ी रुकावट है। 

इस राष्ट्रवाद को ढहाकर ही हिंदू राष्ट्र का ध्वज लहराया जा सकता है। 

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ये बयान, ये घटनाएं उन भविष्यवाणियों के पूरे होने का प्रमाण भी हैं जिन्हें हँसकर उड़ा दिया जाता था। अब साफ़ दिख रहा है कि हिंदुत्व के रूप में फासीवाद का ख़तरा अब ठीक हमारे सामने खड़ा है। पर्वतों के पीछे छिपा बैठा हिंदू राष्ट्र प्रकट हो गया है और क्रूर अट्टहास के साथ हमें अपनी भावी योजनाओं के बारे में बता रहा है।  

ये तो ज़ाहिर है कि गाँधी के प्रति नफ़रत और हिंसा से लबरेज़ ये गाली-गलौज़ दहशत पैदा करने वाली है, मगर अप्रत्याशित कतई नहीं है। ये उस भावना का ही विस्फोट है जिसे संघ परिवार बरसों से ढँकता-छिपाता रहा है। अब उसे लग रहा है कि समय आ गया है जब किसी परदेदारी की ज़रूरत नहीं है, गाँधी के बारे में खुलकर विष-वमन किया जा सकता है। अब कोई डर भी नहीं बचा है, क्योंकि पूरा सत्तातंत्र कब्ज़े में है। पुलिस और प्रशासन तो मुट्ठी में है ही, मगर ज़रूरत पड़ने पर सेना का इस्तेमाल भी किया जा सकता है। 

गाँधी का मान-मर्दन और गोडसे का महिमामंडन दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक ही रणनीति के तहत दोनों योजनाएं चलाई जा रही हैं और हम उन्हें कारगर होते हुए देख भी सकते हैं। 

सावरकर, गोलवलकर से लेकर गोडसे तक सभी गाँधी-वध चाहते थे, अब उनके अनुयायी गोडसेवादी गाँधी के विचारों की हत्या करने में लगे हैं।

हिंदुत्व की राजनीति 

हालाँकि खुद को आक्षेपों से बचाने के लिए अभी भी यही कहा जा रहा है कि ये कुछ अनपढ़ या पथभ्रष्ट साधु-साध्वियाँ हैं जो ऐसा कर रहे हैं। यानी इन्हें अपवादों के तौर पर पेश किया जा रहा है जबकि सचाई ये है कि यही हिंदुत्व की राजनीति की मुख्यधारा बन चुके हैं। अब बाकायदा नया मोर्चा खोल दिया गया है। 

कोई हैरत नहीं होनी चाहिए अगर इन्हें इस भूमिका में तैयारी के साथ उतारा गया हो, क्योंकि धर्म और साधुत्व की आड़ लेकर गाँधी का मान-मर्दन आसान हो जाता है और धर्मप्राण हिंदुओं को भड़काना, बहकाना भी। इस तरह के तौर-तरीकों में संघ परिवार को महारत हासिल रही है। 

अयोध्या आंदोलन के दौरान भी विश्व हिंदू परिषद ने साधु-संतों का इस्तेमाल इसी तरह किया था। उसी रणनीति से उमा भारती, ऋतंभरा और साक्षी महाराज जैसे कुबोल बोलने वाली ब्रिगेड ने मोर्चा सँभाला था।

Abuses to Mahatma Gandhi in dharm sansad chhattisgarh - Satya Hindi

हिंदुत्व और हिंदुत्ववादी 

इसी रणनीति की बदौलत हिंदुत्व को लोकप्रिय और स्वीकार्यता दिलाई गई है। इस उग्र हिंदुत्व को ही हिंदू धर्म के रूप में जनमानस में रोपा जा रहा था, जो अब लहलहाती फसल के रूप में हमारे सामने खड़ी है। यही वज़ह है कि हिंदू धर्मावलंबियों की ओर से हिंदुत्व और हिंदुत्वादियों का कोई विरोध नहीं दिख रहा है, जबकि यही हिंदू धर्म के लिए सबसे बड़े ख़तरे बन चुके हैं।

इसका दूसरा पहलू ये भी है कि साधुओं के ख़िलाफ़ विपक्षी दल ज़्यादा बोल नहीं सकते। अगर वे बोलेंगे तो उन्हें महँगा पड़ सकता है, क्योंकि तब संघ परिवार इसे साधु-संतों पर हमला करार देगा, हिंदू धर्म का विरोधी करके प्रचारित करके ध्रुवीकरण करने लगेगा।  

बहुत से लोगों को अभी भी भ्रम है कि गाँधी हत्या को सेलिब्रेट करने वाले, मिठाईयाँ बाँटने वाले लोग गाँधी के प्रति कोई श्रद्धा रखते हैं। सारा मामला हिंदुत्व की राजनीति का है।

इसीलिए जब तक संघ परिवार को गाँधी की राजनीतिक उपयोगिता नज़र आ रही थी, वह उनके ख़िलाफ़ चुप रहा। उसका राजनीतिक संगठन जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी तो गाँधी के प्रति प्रेम दिखाता रहा, बल्कि जनता पार्टी की समाप्ति के बाद जब भाजपा बनी तो उसने अपना लक्ष्य ही ‘गाँधीवादी समाजवाद’ को घोषित कर दिया था।

सार्वजनिक मंचों में गाँधी को पूजने का ये पाखंड बीजेपी आज भी कर रही है, मगर उसके साथ जुड़े तमाम हिंदुत्ववादी संगठन अब खुलकर गाँधी को बदनाम करने या उन्हें हिंदू विरोधी साबित करने में जुट गए हैं। 

ये काम पिछले सात साल से हो रहा है। सोशल मीडिया पर ये बहुत ही निर्लज्ज तरीक़ों से पैर फैला चुका है। 

Abuses to Mahatma Gandhi in dharm sansad chhattisgarh - Satya Hindi

संघ परिवार सहमत?

संघ परिवार को इसमें कोई आपत्ति नहीं है, बल्कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की चुप्पी बताती है कि इसमें उसकी सहमति है। वास्तव में ये एक तरह की जुगलबंदी है। इसीलिए प्रज्ञा ठाकुर जब गोडसे का महिमामंडन करती हैं तो प्रधानमंत्री दोमुँहा बयान देते हैं। वे कहते हैं कि वे कभी मन से माफ़ नहीं करेंगे,  मगर उसके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई भी नहीं करते। 

यति नरसिंहानंद, प्रबोधानंद, सुरेश चव्हाणके और अन्नपूर्णा पर भी कोई कार्रवाई न होना किस ओर इशारा करता है? इनके बचाव के लिए केंद्र और राज्य की उनकी सरकारें तमाम कानून ढीलें कर देती हैं। इससे उनको एक तरह का अभयदान मिल जाता है और हौसला अफ़ज़ाई भी होती है। 

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अदालतें भी चुप 

सत्ता-तंत्र के नियंत्रण में आने के बाद हिंदुत्ववादियों के हौसले बढ़े हुए हैं और वे बेफ़िक्र हैं कि वे कुछ भी कहेंगे या करेंगे तो उनका बाल भी बाँका नहीं होगा। वे देख रहे हैं कि उनके कार्यकर्ता लगातार घृणा फैलाकर, हिंसा करके भी बच रहे हैं, यहाँ तक कि अदालतें तक चुप हैं, ऐसे में उन्हें क्यों डरना चाहिए।   

जहाँ तक गाँधी पर गालियों से हमले की बात है तो ये न केवल हमला करने वालों, बल्कि पूरे संघ परिवार की मानसिकता को दर्शाता है। ये उस हिंदुत्व के दर्शन की भी पोल खोलता है जिसे आज हिंदू धर्म के रक्षक के तौर पर प्रस्तुत किया जा रहा है। 

जो हिंदू आज हिंदुत्ववादियों की इस मानसिकता को नहीं समझ रहे हैं, वे कल पछताएंगे, जब उनका धर्म कलंकित हो जाएगा और दुनिया भर में वे भर्त्सना झेलेंगे।

अभी तक अल्पसंख्यक और उदारवादी हिंदुत्व के निशाने पर थे, धर्मनिरपेक्षता और समानता के विचार उसके निशाने पर थे। मगर अब सीधे उन लोगों पर हमले किए जा रहे हैं जो इन मूल्यों के साथ जुड़े हुए हैं, जो हाशिए के लोगों को मुख्यधारा में लाने के पक्षधर थे। गाँधी, नेहरू, आंबेडकर इनमें सर्वोपरि रहे हैं। 

ये अभियान अब और तेज़ होगा। पाँच राज्यों के चुनाव के लिए ही नहीं, बल्कि नवंबर और अगले साल और फिर 2024 के चुनावों के लिए भी इसकी ज़रूरत है, क्योंकि गवर्नेंस और विकास के मामले में फेल बीजेपी के पास और कोई रणनीति नहीं है। साथ ही उसे बाक़ी बचे ढाई साल में अपना एजेंडा भी देश पर थोपना है। इसलिए सावधान....आगे खाई है। 

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