छह जनवरी को जस्टिस एन वी रमना को सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश बने नौ महीने हो जाएंगे। इन नौ महीनों में जस्टिस रमना ने सुप्रीम कोर्ट के बारे में आम धारणा को काफ़ी बदला है। उनसे पहले के प्रधान न्यायाधीशों (दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, एस.ए. बोबडे) ने जिस तरह से व्यवहार किया था, उससे न्याय व्यवस्था में लोगों की आस्था को ज़बर्दस्त धक्का लगा था। लोग इस निष्कर्ष पर पहुँचने लगे थे कि जिस तरह से सरकार ने दूसरी संवैधानिक संस्थाओं को कमज़ोर करके अपने राजनीतिक एजेंडे के लिए इस्तेमाल करने का साधन बना लिया है, वैसे ही अब न्यायपालिका भी उसके नियंत्रण में चली गई है।
माफ़ कीजिए सीजेआई रमना, केवल बोलना ही काफ़ी नहीं है!
- देशकाल
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- 2 Jan, 2022

क्या ये अपेक्षा भी जायज़ नहीं है कि जो एक दर्ज़न मामले सुप्रीम कोर्ट ने पिछले तीन-चार साल से ठंडे बस्ते में डाल रखे हैं, कम से कम उन्हें निकालकर सुनवाई तो शुरू करे। ये तमाम मामले लोकतंत्र, स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों से जुड़े हैं, जिनकी रक्षा का दायित्व सुप्रीम कोर्ट का है।
ज़ाहिर है कि अब ऐसी स्थिति नहीं है। मगर ऐसा भी नहीं है कि संदेह के बादल पूरी तरह से छँट गए हैं और लोग मानने लगे हैं कि सुप्रीम कोर्ट तो पूरी तरह से स्वतंत्र होकर काम कर रहा है। लेकिन ये तो स्वीकार करना ही पड़ेगा कि जस्टिस रमना एक हद तक उसकी साख को वापस लाने में कामयाब हो गए हैं।