बीजेपी जातीय समरसता की बात करती रही है, लेकिन उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले पिछड़ी जातियों के नेताओं की भगदड़ ने क्या इस पूरे नैरेटिव को धराशायी नहीं कर दिया है?
क्या सेना की शहादत या सेना के शौर्य का चुनावी रैली में किसी भी तरह का राजनीतिक इस्तेमाल सही हो सकता है? प्रधानमंत्री चुनावी रैली में जो कर रहे हैं उस पर आख़िर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं?