नगालैंड में सुरक्षा बलों की ओर से किया गया नरसंहार अगर दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है तो उसके प्रति शेष भारत में उपेक्षा का भाव और भी विचलित करने वाला है। अगर विपक्षी दलों और मानवाधिकारों की चिंता करने वालों को छोड़ दें तो इस क़त्ले आम को लेकर कहीं कोई हलचल, कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई देती। कुछ इस तरह का ठंडापन है मानो ये वारदात अपने मुल्क में न होकर कहीं दूर किसी अपरिचित देश में हुई हो।
नगालैंड के नरसंहार पर नागरिक समाज खामोश क्यों है?
- विचार
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- 8 Dec, 2021

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि पूर्वोत्तर के अलगाववादी आंदोलनों को पड़ोसी देशों से मदद मिलती रही है, मगर इसमें हमारी सरकारों की भूमिका भी कोई कम नहीं रही। उनकी दमनकारी नीतियों ने आदिवासी समाजों में असंतोष और अलगाववाद की भावना को गहरा करके उन्हे हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया है।
ज़रा सोचिए कि अगर ऐसा कुछ उत्तर भारत में हुआ होता तो क्या होता क्या यहां का समाज उसे भी इसी तरह खामोश होकर देखता रहता या उसने आसमान सिर पर उठा लिया होता पक्के तौर पर पूरा समाज आंदोलित हो जाता।
कहीं मोमबत्तियों का जुलूस निकल रहा होता तो कहीं लोग पुलिस और प्रशासन से जूझ रहे होते।