प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों का सम्मान करती है और उनके योगदान को सराहती है। मोदी ने यह बात अपनी पार्टी के संसदीय दल की बैठक में पूर्व प्रधानमंत्रियों के योगदान को दर्शाने वाले उस संग्रहालय का जिक्र करते हुए कही, जिसका वे आगामी 14 अप्रैल को उद्घाटन करने वाले हैं।
यह संग्रहालय मौजूदा सरकार द्वारा की जाने वाली कोई नई स्थापना नहीं, बल्कि नई दिल्ली स्थित नेहरू स्मारक एवं पुस्तकालय का ही परिवर्तित स्वरूप होगा। नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय 1964 में जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद स्थापित हुआ था। इससे पहले यह ऐतिहासिक भवन प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू का सरकारी आवास हुआ करता था।
मोदी सरकार ने जब इसे 'पूर्व प्रधानमंत्री संग्रहालय’ में तब्दील करने का फैसला किया था तब पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिख कर उनसे अनुरोध किया था कि तीन मूर्ति भवन परिसर के स्वरूप के साथ किसी तरह की छेड़छाड़ न की जाए।
मनमोहन सिंह ने अपने पत्र में लिखा था कि पंडित नेहरू को सिर्फ कांग्रेस पार्टी के साथ ही जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए, क्योंकि स्वाधीनता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता, देश के पहले प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में उनका नाता पूरे देश के साथ था। लेकिन मोदी ने न तो मनमोहन सिंह के अनुरोध को स्वीकार किया और न ही उनके पत्र का जवाब देने की शालीनता दिखाई।
देश में मोदी से पहले नेहरू सहित 14 प्रधानमंत्री हुए हैं और सभी ने अपने समय की परिस्थिति और अपनी क्षमताओं के मुताबिक आधुनिक भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया है। इस सिलसिले में उनसे गलतियां भी हुई हैं, जो कि स्वाभाविक है।
चूंकि हम लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हैं, लिहाजा सार्वजनिक जीवन में और खासकर उच्च पदों पर रहा कोई भी व्यक्ति या उसका कामकाज आलोचना से परे नहीं हो सकता। इसलिए पूर्व प्रधानमंत्रियों की भी आलोचना होती रही है और होना भी चाहिए।
लेकिन नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद बीजेपी ने पूर्व प्रधानमंत्रियों की आलोचना के बजाय उनके खिलाफ बेहद खर्चीला अभियान चला कर योजनाबद्ध तरीके से उन्हें अपमानित और लांछित करने की परियोजना शुरू की।
कुछ इसी तरह के संदेश सोनिया गांधी के बारे में प्रसारित हो रहे हैं, जिनमें बताया जाता है कि वे शादी से पहले इंग्लैंड में बार डांसर के तौर पर काम करती थीं और यह भी कि वे सीआईए की एजेंट हैं। सोनिया को बार डांसर बताने वाली बात एक वीडियो में बीजेपी सांसदसुब्रमण्यम स्वामी भी कहते हुए देखे जा सकते हैं। जिस मंच से स्वामी यह बात कह रहे हैं उस मंच पर गोविंदाचार्य और संघ से जुडे वरिष्ठ पत्रकार रामबहादुर राय भी मौजूद हैं। यह तो महज दो बानगी है। नेहरू-गांधी परिवार के बारे में इस तरह के कई घटिया वीडियो, तस्वीरें और संदेश सोशल मीडिया में तैर रहे हैं।
याद नहीं आता कि नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत या बीजेपी-संघ कुनबे से जुडे किसी अन्य बड़े नेता ने ऐसे संदेशों और वीडियो पर कभी अपनी असहमति, नाराजगी या खेद जताया हो। वे ऐसा कर भी कैसे सकते हैं, क्योंकि नरेंद्र मोदी खुद प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में सोनिया गांधी को 'इटालियन जरसी गाय’ और ‘राहुल गांधी’ को क्रास ब्रीड कह चुके हैं।
मोदी अपने भाषणों में अपनी सरकार की उपलब्धियों की उल्लेख करते हुए अक्सर कहते हैं कि जितना काम उनकी सरकार ने महज 6-7 साल में कर दिखाया, उतना काम पिछली सरकारें 70साल में भी नहीं कर पाई।
वे अपनी सरकार में भ्रष्टाचार खत्म होने का दावा करते हुए पिछली सभी सरकारों को चोर-लुटेरों की सरकार बताने में भी संकोच नहीं करते। लेकिन यह सब करते हुए मोदी यह भूल जाते हैं कि उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले 67 सालों में छह साल उन्हीं के प्रेरणा पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली सरकार भी रही है और ढाई साल तक मोरारजी देसाई की अगुवाई में चली जनता पार्टी की सरकार में वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल रहे हैं। यानी खुद को महान बताने के चक्कर में वे प्रकारांतर से वाजपेयी और आडवाणी को भी अपमानित और लांछित करने से भी नहीं चूकते।
आजादी का अमृत महोत्सव
देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लेकर तो मोदी का नज़रिया जब-तब जाहिर होता रहता है। देश इस वर्ष अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे करने जा रहा है। इस मौके पर मोदी सरकार द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए सिर्फ स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास को ही विकृत रूप में नहीं परोसा जा रहा है, बल्कि आजादी के बाद आधुनिक भारत के अब तक के सफर के बारे में सरकारी प्रचार सामग्री में भी ऐसा ही खेल हो रहा है।यह मोदी की तंगदिली ही है कि अमृत महोत्सव के किसी भी कार्यक्रम में नेहरू और अन्य पूर्व प्रधानमंत्री ही नहीं, बल्कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी पूरी तरह नदारद हैं। वैसे भी केंद्र सरकार की प्रचार सामग्री से नेहरू को तो पहले ही हटा दिया गया था। पिछले साल तो 14 नवंबर को उनकी जयंती पर संसद के केंद्रीय कक्ष में हुए कार्यक्रम में दोनों सदनों के मुखिया यानी राज्यसभा के सभापति और लोकसभा स्पीकर भी नहीं गए और न ही केंद्र सरकार के किसी वरिष्ठ मंत्री या बीजेपी नेता ने उसमें शिरकत की।
अमृत महोत्सव के मौके पर सरकार की ओर से तैयार कराई गई प्रचार सामग्री से भी नेहरू पूरी तरह से गायब है। अमृत महोत्सव पर पूरे साल सरकार का कार्यक्रम चलेगा लेकिन आजादी की लड़ाई में या आजादी के बाद देश के निर्माण में नेहरू की भूमिका के बारे में कुछ भी नहीं बताया जाएगा।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को भी सिर्फ प्रतीकात्मक रूप से एकाध जगह दिखा कर खानापूर्ति की जाएगी।
चुनावी रैलियों में तो अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्रियों को लेकर मोदी की जुबान कई बार बेलगाम हो जाती है। पिछले आम चुनाव में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी 'भ्रष्टाचारी नंबर एक’ कहा था तो 2018 में गुजरात विधानसभा के चुनाव में उन्होंने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस के कुछ अन्य नेताओं पर पाकिस्तान के साथ मिल कर बीजेपी को हराने की साजिश रचने का आरोप तक लगा दिया था, जिसके लिए बाद में अरुण जेटली को संसद में खेद व्यक्त करना पड़ा था।यहीं नहीं, संसद में तो मनमोहन सिंह को रेनकोट पहन कर बाथरूम में नहाने वाला प्रधानमंत्री जैसा बेहद छिछला कटाक्ष करने से भी मोदी नहीं चूके थे।
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