उत्तराखंड समेत समूचे हिमालयी क्षेत्र में बरसात के मौसम में तो बादल फटने, ग्लेशियर टूटने, बाढ़ आने, जमीन दरकने और भूकंप के झटकों की वजह से जान-माल की तबाही होती ही रहती है। ऐसी आपदाओं का कहर कभी उत्तराखंड, तो कभी कश्मीर, कभी हिमाचल प्रदेश तो कभी पूर्वोत्तर के राज्य अक्सर झेलते रहते हैं। लेकिन इस बार उत्तराखंड को सर्दी के मौसम में आपदा से रूबरू होना पड़ रहा है। बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब और अंतरराष्ट्रीय स्कीइंग स्थल औली जैसे प्रसिद्ध स्थानों का प्रवेश द्वार कहे जाने वाले जोशीमठ में हाहाकार मचा हुआ है। आदि शंकराचार्य की तपोभूमि के रूप में जाना जाने वाला जोशीमठ तेजी से दरक रहा है। वहां सैकड़ों मकानों, सड़कों तथा खेतों बड़ी-बड़ी दरारें आ रही हैं, जिससे वहां रहने वाले लोगों का विस्थापन शुरू हो गया है।
पिछले साल भी फरवरी यानी सर्दी के मौसम में उत्तराखंड में नंदादेवी ग्लेशियर टूटने से उत्तराखंड में कुदरत का कहर बरपा था, जिससे चमोली जिले में भीषण तबाही मची थी और बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ था। आश्चर्यजनक रूप से सर्दी के मौसम में घट रही यह घटनाएं एक नए बड़े खतरे की ओर इशारा करती है। कहने को तो यह खतरा प्राकृतिक है और इसे जलवायु चक्र में हो रहे परिवर्तन से भी जोड़कर देखा जा रहा है लेकिन असल में यह मनुष्य की खुदगर्जी और विनाशकारी विकास की भूख से उपजा संकट है।
हिमालय बचाओ नहीं तो कुछ नहीं बचेगा ?
- विचार
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- 17 Jan, 2023
जोशीमठ एक इशारा है कि प्रकृति किस तरह बदला लेती है। लेकिन इसका सीधा संबंध हिमालय से है। हिमालय को अगर बचाने की मुहिम शुरू हुई तो भारत का बहुत कुछ बच जाएगा, अन्यथा हमें जलवायु परिवर्तन के बुरे दौर का सामना करना पड़ेगा।
