राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी सामाजिक और राजनीतिक तौर पर जैसा भारत बनाना चाहते हैं, उसकी बानगी के रूप में गुजरात को देखा जा सकता है। गुजरात पिछले दो दशक से आरएसएस और बीजेपी की प्रयोगशाला बना हुआ है। इस प्रयोगशाला में पिछले 20 वर्षों के दौरान सबसे प्रमुखता से जो काम हुआ है वह है सूबे की राजनीति में मुसलमानों की भूमिका को पूरी तरह खत्म करना। ऐसा करने में भाजपा और आरएसएस को बहुत हद तक कामयाबी भी मिली है।

गुजरात चुनाव में इस बार मुसलिम उम्मीदवार कितने हैं? बीजेपी, कांग्रेस और आप ने कितने मुसलिमों को उम्मीदवार बनाया है? आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है?
गुजरात में 10 फीसदी के करीब मुस्लिम आबादी है लेकिन पिछले दो दशक से यह स्थिति बनी हुई है कि कोई भी राजनीतिक दल किसी भी चुनाव में मुसलमानों को उनकी आबादी के अनुपात में टिकट नहीं देता है। यही कारण है कि गुजरात की 182 सदस्यों वाली विधानसभा में मुस्लिम आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाले विधायकों की संख्या दो फीसदी भी नहीं है।