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दलित छात्रा के सुसाइड नोट में प्रोफ़ेसरों पर प्रताड़ना का आरोप, न्याय मांग रहे परिजन

गुजरात में डॉक्टर बनने का सपना लिए एक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने वाली दलित छात्रा को जान गँवानी पड़ गई। वह उत्पीड़न, बुलिइंग और दुर्व्यवहार से परेशान थी। यह रैगिंग नहीं थी। ऐसा उत्पीड़न सीनियर छात्रों ने नहीं किया था। बल्कि उसको पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसरों पर ही ऐसे उत्पीड़न का आरोप है। वह प्रथम वर्ष की छात्रा थी और यह सब सह नहीं सकी। उसने सुसाइड नोट में प्रोफेसरों के नाम भी लिखे हैं। पुलिस अब तक चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर पाई है। घटना के एक महीने बाद भी उसके परिजन न्याय मांगते फिर रहे हैं और यह पता लगाने में हैं कि आख़िर उनकी बेटी की ग़लती क्या थी।

उनके परिजनों का क्या कहना है, यह जानने से पहले यह जान लें कि आख़िर यह घटना क्या थी और छात्रा ने सुसाइड नोट में क्या लिखा है। यह मामला मेहसाणा के पास बसना मर्चेंट मेडिकल कॉलेज फॉर होम्योपैथी का है। प्रथम वर्ष की बीएचएमएस छात्रा ने जनवरी महीने के आख़िर में अपने छात्रावास के कमरे में आत्महत्या कर ली। आरोप लगा कि चार प्रोफेसरों द्वारा उनका लगातार मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न किया जा रहा था। आरोप कॉलेज प्रिंसिपल की निष्क्रियता पर भी लगा। पांचों- प्रोफेसर वी एस राव वासनिक, प्रशांत नुवाल, वाई सी बोस, डॉ. संजय रीठे और प्रिंसिपल कैलाश पाटिल- पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया।

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तब लड़की के पिता द्वारा आरोपियों के ख़िलाफ़ नामजद एफ़आईआर दर्ज किए जाने के बाद पुलिस ने पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में लिया था। बाद में उन्होंने मेहसाणा में स्थानीय मीडिया के सामने आरोप लगाया था कि उसे इसलिए परेशान किया गया क्योंकि वह अनुसूचित जाति से थी। 

टीओआई की रिपोर्ट के अनुसार एफ़आईआर में कहा गया है कि मृतका ने पहले अपने पिता को प्रोफेसरों द्वारा निशाना बनाए जाने के बारे में बताया था। उसने उन पर लगातार उत्पीड़न, मौखिक दुर्व्यवहार, सार्वजनिक अपमान और ग़लत तरीके से शरीर को छूने का आरोप लगाया। जब उसने प्रिंसिपल के सामने इस मुद्दे को उठाया, तो कोई कार्रवाई नहीं की गई।

रिपोर्ट के अनुसार एफ़आईआर में आरोप लगाया गया है, 'उसने कथित तौर पर उन्हें बताया कि प्रोफेसर अक्सर उसका अपमान करते थे, उसे अत्यधिक शैक्षणिक कार्य देते थे, उसे लंबे समय तक खड़े रहने के लिए मजबूर करते थे और अलग-अलग बहानों से उसे ग़लत तरीक़े से छूते थे। कॉलेज के प्रिंसिपल ने कथित तौर पर उसकी शिकायतों को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि इस तरह के व्यवहार को सहना शिक्षा का एक हिस्सा है।'
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पीड़िता के परिजनों से बातचीत के आधार पर दिप्रिंट ने ख़बर दी है कि 29 जनवरी को जिस दिन उसकी मौत हुई, उस दिन उसने अपने चचेरे भाई को फोन करके डॉक्टर के पास ले जाने का आग्रह किया था। फिर उसने उसे वापस फोन किया और कहा कि उसे कॉलेज परिसर से बाहर जाने की अनुमति नहीं मिल रही है। कुछ घंटों बाद ही छात्रा ने आत्महत्या कर ली। 

पीड़िता की सहपाठी ने उस घटना को याद किया जहां एफ़आईआर में नामित प्रोफेसरों में से एक ने दलित छात्रा का अपमान किया था। उसने दावा किया, "उसने उसे डांटते हुए कहा, 'तुम्हारी औकात में रहा करो'।" हालाँकि एफ़आईआर में इसका कोई ज़िक्र नहीं है।

छात्रा की आत्महत्या के दो दिन बाद पुलिस को उसके छात्रावास के कमरे में एक नोट मिला। सुसाइड नोट में उसने अपने प्रोफेसरों को 'हैवान' और 'यमराज' कहा। उसने लिखा है, 'मेरी आत्महत्या मेरे दोस्तों की मदद करेगी।'

छात्रा की मौत ने समुदाय, परिसर और कॉलेज को हिलाकर रख दिया है। इसने संस्थान को उत्पीड़न, बुलिइंग और दुर्व्यवहार के आरोपों के चलते जाँच के दायरे में ला दिया है। छात्रों के विरोध के मद्देनज़र चार दिनों के लिए कक्षाएं बंद करनी पड़ीं। जब कक्षाएँ शुरू हुईं तो चारों आरोपी प्रोफेसरों को कक्षाएं लेने से रोक दिया गया है।

प्रिंसिपल सहित चार प्रोफ़ेसरों को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है, लेकिन अब वे जमानत पर बाहर हैं। दिप्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार उसके दोस्तों ने आरोप लगाया कि पिछले दो महीनों से उसके प्रोफेसर उसे लगातार निशाना बना रहे थे, मौखिक रूप से गाली-गलौज कर रहे थे और उसे सजा देने के तौर पर अलग-थलग कर रहे थे।

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इस बीच, छात्रा का परिवार अभी भी यह समझने की कोशिश कर रहा है कि उसकी मौत की वजह क्या थी। पीड़िता के पिता परवीन श्रीमाली ने कहा, 'मेरी बेटी बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहती थी, वह प्रतिभाशाली और मेहनती थी, काश मुझे उत्पीड़न के बारे में पहले पता होता। मेरी बेटी ज़िंदा होती।' 

प्रिंसिपल कैलाश जिंगा पटेल ने इन आरोपों से इनकार किया है। उन्होंने दिप्रिंट से कहा, 'मुझे उम्मीद नहीं थी कि हमारे कॉलेज में ऐसा होगा। मैं यहां 35 साल से भी ज़्यादा समय से पढ़ा रहा हूं।'

उन्होंने कहा, 'कॉलेज में नियमित अनुशासनात्मक प्रक्रियाएँ होती हैं और सभी छात्रों को उनका पालन करना होता है। हमें उपस्थिति बनाए रखनी होती है और अगर छात्र 70-80 प्रतिशत उपस्थिति बनाए रखने में सक्षम नहीं हैं, तो हम उन्हें परीक्षा देने की अनुमति नहीं दे सकते। यह उत्पीड़न नहीं है।'

पुलिस ने अब तक अपनी जांच का ब्योरा देने से इनकार कर दिया है। मेहसाणा के एसपी तरुण दुग्गल ने कहा, 'यह केस अभी भी चल रहा है और हम छात्रों और प्रोफेसरों से पूछताछ कर रहे हैं। अभी तक आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया है।'

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है।)
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क़मर वहीद नक़वी
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