गुजरात में डॉक्टर बनने का सपना लिए एक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लेने वाली दलित छात्रा को जान गँवानी पड़ गई। वह उत्पीड़न, बुलिइंग और दुर्व्यवहार से परेशान थी। यह रैगिंग नहीं थी। ऐसा उत्पीड़न सीनियर छात्रों ने नहीं किया था। बल्कि उसको पढ़ाने वाले प्रोफ़ेसरों पर ही ऐसे उत्पीड़न का आरोप है। वह प्रथम वर्ष की छात्रा थी और यह सब सह नहीं सकी। उसने सुसाइड नोट में प्रोफेसरों के नाम भी लिखे हैं। पुलिस अब तक चार्जशीट भी दाखिल नहीं कर पाई है। घटना के एक महीने बाद भी उसके परिजन न्याय मांगते फिर रहे हैं और यह पता लगाने में हैं कि आख़िर उनकी बेटी की ग़लती क्या थी।