भाषा की ग़ुलामी बाक़ी तमाम ग़ुलामियों में सबसे बड़ी होती है। दुनिया में जो भी देश परतंत्रता से मुक्त हुए हैं, उन्होंने सबसे पहला काम अपने सिर से भाषाई ग़ुलामी के गट्ठर को उतार फेंकने का किया है। यह काम रूस में लेनिन ने, तुर्की में कमाल पाशा ने, इंडोनेशिया में सुकर्णो ने और एशिया, अफ्रीका तथा लातिनी-अमेरिकी देशों के दर्जनों छोटे-बड़े देशों ने किया है। लेकिन भारत में जैसा भाषायी पाखंड जारी है, वैसा कहीं और देखने-सुनने में नहीं आता।

आज हिंदी दिवस है। इस खास मौके पर यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि हिंदी की मौजूदा स्थिति कैसी है? यह दलील क्यों दी जाती है कि अंग्रेजी के प्रति नफरत का वातावरण बनाया गया तो यह देश टूट जाएगा?
बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध तक गुलाम रहे देशों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है, जो अपनी आज़ादी के साढ़े सात दशक बीत जाने के बाद भी भाषा के स्तर पर किसी भी मौजूदा गुलाम देश से ज्यादा गुलाम है।