तो हमारी समस्या यह है कि हमें नहीं मालूम कि आज देश की असली समस्या 'लव जिहाद' हो चुकी है, हर मस्जिद के नीचे मंदिर होना बन चुकी है। धर्मांतरण मुख्य समस्या है…। पढ़िए, विष्णु नागर का व्यंग्य।
लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी ने खुद को नॉन बायोलॉजिकल बताया था, लेकिन चुनाव जीतकर आने के बाद अब वह कह रहे हैं कि 'कभी-कभी ग़लतियाँ हो जाती हैं, मैं भी इंसान हूँ भगवान नहीं हूँ'।
मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार हर चुनावी संबंधी सूचना देने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस में शेर-ओ-शायरी या कोई कविता पढ़ते नजर आ रहे हैं। देश उनकी बहुमुखी प्रतिभा को सराहने की बजाय आलोचना में लगा रहता है। लेकिन वरिष्ठ पत्रकार राकेश कायस्थ ने राजीव कुमार की इस प्रतिभा को पहचाना और काफी सदविचार उड़ेल दिया है। आप भी स्वाद लीजिएः
डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अपनी ताजपोशी पर शी जिनपिंग को निमंत्रण पत्र दिया तो ठुकरा दिया, लेकिन हमारे प्रधान जी को अब तक बुलाया ही नहीं। जिगरी यारी भी भूल गए क्या?
पटना में वाजपेयी के जन्मदिन के मौके पर लोक गायिका देवी ने कार्यक्रम में गांधी जी का एक प्रिय भजन 'रघुपति राघव राजा राम' गाना शुरू किया तो हंगामा क्यों हुआ? क्या गांधी जी के इस भजन में ईश्वर के साथ अल्लाह आने से आपत्ति है?
बताए देता हूं मेरी नज़र इतनी तेज है कि मेरी ईडी ने उस कारोबारी को भी धर दबोचा, क्योंकि उसके बच्चों ने राहुल गांधी को भारत यात्रा के दौरान अपनी गुल्लक भेंट कर दी थी…। पढ़िए, विष्णु नागर का व्यंग्य।
2014 के बाद कैसा-कैसा 'विकास' हुआ है? पहले अयोध्या में राम पथ था? नहीं था। अब है और बनते ही पहली बरसात में उसमें बड़े -बड़े गड्ढे पड़ गए। राम पथ न बनता तो गड्ढे कहां पड़ते, गड्ढों को 'विकास' का अवसर इस सरकार ने भरपूर दिया है। 'विकास' हुआ या नहीं?
मजदूरी करने वाले मुफ्त का पांच किलो अनाज लेकर मौज में है। मध्यम वर्ग टैक्स चुपचाप निकालकर दे देता है। बड़े उद्योगपति करोड़ों लेकर फरार हो जाते हैं। तो लोग आख़िर मगन किस चीज को लेकर हैं?
एक ऐसा भारत जहां की 80 करोड़ आबादी मुफ्त का राशन खाकर या मुफ्त में मिला राशन बेचकर गर्व करती है। जॉम्बी द्वीप का भविष्य इसी 80 करोड़ आबादी के हाथ में है। यही आबादी अब ओपिनियन मेकर है।
अडानी, भारतीय। जिनको हजारों करोड़ की रिश्वत दी गई, वे भारतीय। देनेवाले भारतीय, लेनेवाले भारतीय! न देनेवाले को शिकायत है, न लेनेवाले को। न ईडी को दिक्कत है, न सेबी को, न सीबीआई को चिंता है! सारी दिक्कत अमेरिका को है!
जहाँ हवा और पानी तक शुद्ध नहीं, दूध और घी में धड़ल्ले से मिलावट जारी है, दवा, डॉक्टर और पीएमओ के अधिकारी तक जिस सरकार में जाली नसीब हो जाते हैं, दिवाली में मिठाई तक शुद्ध नहीं मिलती, वहाँ भाषा तो शुद्ध ज़रूर होनी चाहिए!
उस शख्स ने कभी चौराहे पर जूते लगाए जाने की पेशकश की थी। लेकिन आज वो इतना गिर चुका है कि उसके बाद उसके गिरावट को मापने का कोई तरीका ही नहीं बचा है। वरिष्ठ पत्रकार-लेखक विष्णु नागर ने उसके गिरने की सीमा नापने की कोशिश की, लेकिन वो नाप नहीं पाए और अंत में उन्हें भी कहना पड़ा- कायर कहीं के। जरा आप भी गिरने की सीमा नापने की कोशिश करेंः